बहुत मुश्किल से वो अपने दिल के दरवाजों को बन्द कर पायी थी, मगर फिर भी जैसे दराजों से सूरज की किरणें छन कर आ ही जाती है, वैसे ही उसके जेहन में भी वो पल दस्तक दे रहे थे जिन पलों में उसको पहली बार प्यार जैसी मासूम सी भावना का अहसास हुआ था । पिछले छः महीनों में जिस रिश्ते की इमारत को उसने अपने छोटे छोटे अरमानों की ईट से बनाया था, आज वो ऐसे ढह गया था जैसे आँधी किसी तिनके से बने घरौंदे को उडा ले जाती है। अफसोस सिर्फ इतना था कि चारू अपने ही हाथों से अपने प्यार के घर को चकनाचूर करके आयी थी .......
चारू और नवीन दोनो में ही काफी असमानताये थी, मगर फिर भी कुछ ऐसा था, कि उन दोनो को ही एक- दूसरे का साथ अच्छा लगता था। जरा सी भी खुशी एक को मिलती तो दूसरा उससे ज्यादा खुश होता था । दोनो ही ये अच्छी तरह से जानते थे कि सामाजिक दीवारे उन्हे कभी एक नही होने देगी , मगर फिर भी प्यार शायद किसी दीवार को नही देख पाता , ऐसा ही कुछ इन दोनो के बीच भी था । चारू ये जानते हुये भी कि नवीन का फ्लैट उसका घर कभी नही बन पायेगा, फिर भी उसके हर एक कोने को पूरे मन से बडे करीने से सजा देना चाहती थी । अक्सर खुद ही घर के लिये जो मन होता ले आती। आज भी कुछ ऐसा ही हुआ । कई दिनो से उसका एक प्यारा सा गुलदस्ता लेने का मन था, आज जब बाजार गयी तो उसे वैसा ही गुलदस्ता दिख गया जैसा वो चाहती थी । ये सोच कर की नवीन को सरप्राइज देगे, बिना उसको बताये उसके फ्लैट आ गयी । अभी डोर बेल बजाने को ही थी कि अन्दर से कुछ दोस्तों की हंसी मजाक की आवाजे आयी । अचानक उसके मन मे आया चलो सुनती हूँ क्या बातें चल रही हैं। अन्दर नवीन और उसके दोस्त किसी लडकी की सुन्दरता के चर्चे मजे से कर रहे थे, चारू को थोडा अटपटा सा लगा कि लडके कैसे लडकियों की बातें करते है, मगर तभी मन में एक तसल्ली सी भी हुयी कि उसका नवीन ऐसा नही है, क्योकि इतनी देर मे नवीन का एक भी शब्द उसने नही सुना था, कि अचानक ही जब उसको ये पता चला कि जिस लडकी के चर्चे अन्दर चल रहे हैं वो कोई और नही खुद चारू ही है, तो उसे नवीन का चुप रहना ऐसा लगा मानों उसे किसी सर्प ने डस लिया हो और वो दूर मूक दर्शक बना देख रहा है । और वास्तव मे सच भी यही था, कि उसके स्वाभिमान और सम्मान को ही डसा जा रहा था । इससे पहले कि उसके हाथों से गुल्दस्ता टूट कर बिखर जाता जैसे एक क्षण पहले उसके विश्वास के टुकडे हुये थे, वो भारी कदमों से वापस आ गयी , और उस घर की चौखट पर छोड आयी अपने प्यार के बिखरे टुकडे जिस पर उसे स्वयं से ज्यादा अभिमान था ।