ना मुझे मन्दिर की हसरत ,
ना मुझे मस्जिद की ख्वाइश ।
बाँट ना बस हिन्द को अब ,
मेरी इतनी सी गुजारिश ॥
रक्त का चन्दन मेरे,
माथे का कलंक बन जायगा ।
चादर चढाओगे मुझपे जो ,
कफन वो मेरा कहलायेगा ॥
घर किसी का उजडे जिससे,
ना बना ऐसी कोई साजिश ।
बाँट ना बस हिन्द को अब ,
मेरी इतनी सी गुजारिश ॥
मै तो बसता हूँ तुम्ही में,
दिल में देखो तो जरा ।
लाशों की नींव के तले,
ना बना तू दर मेरा ॥
बरसों सहा चुपचाप मैने,
ना कर सब्र की आजमाइश ॥
बाँट ना बस हिन्द को अब ,
मेरी इतनी सी गुजारिश ॥
मेरी इतनी सी गुजारिश .....................