अभियेन्द्र प्रताप मिश्र के नाम से कौन परिचित नही था, सभी उनका आदर करते थे, आदर इसलिये नही कि वो महान व्यक्तित्व के मालिक थे, इसलिये कि सभी उनकी शक्ति से परिचित थे। कहने को तो उनके सहयोगी और पार्टी सदस्य उनकी जीत को लोकतंत्र की जीत बता रहे थे, मगर हर व्यक्ति जानता था कि ये जीत किसकी है, जनतंत्र की या बलतंत्र की !
पिछले पन्द्रह सालों में सरकारे बदल गयी, मगर कुछ नही बदला, तो वो था सिवेर का निरंकुश शासक। जी हाँ, शासक ही तो कहा जायगा , जिसने अपने विकास के सिवा्य किसी और का विकास करना तो दूर की बात, कभी उसके लिये सोचा तक नही था, फिर भी आज तक किसी की आवाज में वो ताकत नही जो अभियेन्द्र के खिलाफ कुछ बोल सके।
आज चौथी बार उनकी विजय और मासूम जनता की हार हुयी थी । दोपहर से उनके घर में बधाई देने वालों का तांता लगा
हुआ था। हर कोई कुछ ना कुछ ले कर ही आता था। उनको खुश करने के लिये सुरा और सुन्दरी दोनो के इन्तजाम किये गये।
अभी
कुछ दिनों पहले अपने कुकृत्यों के कारण, अभियेन्द्र को पार्टी प्रमुख की तरफ से कुछ चेतावना भी मिली थी, सो इस बार उन्होने अपने मुलाजिमों से किसी दूर के इलाके में सारे इन्तजामात करने को कहा था।
पूरे
दो दिन बाद अपनी जीत की खुशी मना कर अभियेन्द्र अभी घर पहुंचे ही थे कि उनकी पत्नी
ने उन्हे सूचना दी कि रश्मि दो दिन से लापता है। रश्मि उनकी पहली पत्नी की संतान
थी। उनकी ये पत्नी रश्मि को बिल्कुल भी पसन्द नही करती थी और इसी कारण से उसने अभी
तक अभियेन्द्र को इसकी सूचना नही होने दी थी। वो खुद भी दो बार रश्मि को मरवाने की
कोशिश कर चुकी थी। अभियेन्द्र को किरणवती पर से विश्वास उठ चुका था और इसीलिये
उन्होने रश्मि को बचपन से ही पढने के लिये बोर्डिंग स्कूल भेज दिया था। दो दिन
पहले वो अपने पिता की जीत की खुशी में शामिल होने और उनको सरप्राइस देने के लिये आ
रही थी, कि किसी ने शायद उसका अपहरण कर लिया था। वो तो कालेज वालों ने घर फोन किया
था कि रश्मि घर चली आई है, उसे बता दिया जाय कि उसका नाम एशियाई खेल में जाने वाली
टीम में सेलेक्ट हो गया है, मगर आज दो दिन बाद भी वो अभी तक घर नही आयी थी।
सारी
बात जानने के बाद, अभियेन्द्र पुलिस को सूचना देने ही वाले थे कि तभी फोन की घंटी
बजी। और उधर से किसी ने कहा - अभियेन्द्र तुमने मुझे हरा कर जिस तरह अपनी जीत की
खुशी मनाई है, मैने भी उतनी ही खुशी अपनी हार की मनाई है,फर्क बस इतना है तेरे साथ
तो तुम्हे भी नही पता था किसकी किसकी बेटियां थीं, मगर ये जान ले मेरे साथ सिर्फ
एक ही व्यक्ति की इकलौती बिटिया थी -जिसने मुझे हराया है । अब सोचो कौन जीता इस
बार तुम या मै !
आज दस
दिन बीत चुके थे, मगर अभियेन्द्र अपनी सारी प्रत्यक्ष एंव परोक्ष शक्ति लगा देने
के बाद भी रश्मि का पता ना लगा सके थे। आज उन्हे अपने पद का कोई मान ना बचा था। चालीस
वर्षीय अभियेन्द्र इन दस दिनों में दस वर्ष की उम्र पार कर चुके से लगते थे। सब
कुछ होते हुये भी वो खुद को दुनिया का सबसे गरीब व्यक्ति मान रहे थे। दो दिनों से
उन्होने अन्न जल भी छोड रखा था, जिस भगवान को ना जाने कब से भूले बैठे थे, आज सारी
उम्मीदें उसी ईश्वर से थी। तभी उनके सामने वो अभियेन्द्र आ खडा हुआ - जो निर्बल तो
था मगर निश्छल था, निर्धन तो था, मगर मानवता की दौलत से भरपूर सच का प्रतिबिम्ब था
। अभियेन्द्र अपने इस रूप से नजरे नही मिला पा रहे थे, आखिर कहाँ खो गया था - उनका
बल, उनका अभिमान, उनकी अकूत सम्पदा जिसके सामने उनसे कोई नजरे मिलाना तो दूर नजरे
उठा तक ना पाता था! निर्भीक अभियेन्द्र ने , इस क्षीण, दुर्भल, परास्त अभियेन्द्र
से पूछा - आज किस बात के लिये रोते हो ? आज अपनी बेटी नही मिल रही तो इतनी बेचैनी
है, जरा सोचो कितनी बटियों को तुमने लापता कर दिया, तब क्या बीती होगी, उन सभी के
माँ बाप पर। जब असहाय लोगों के घर जला कर अपनी लालसाओं की अग्नि को शान्त करते थे
तब कैसे वो बेबस लोग खुद को आग की लपटों के हावाले कर देने को मजबूर हो जाते थे।
भगवान
के सामने रोता बिलखता अभियेन्द्र, अब सिर्फ एक पिता था, बेटी के विछोह ने उसे एक
दरिन्दे से इन्सान में परिवर्तित कर दिया था। वो किसी भी तरह से अपने पापों का
प्रायश्चित करना चाह रहा था। उसे आज अपनी बेटी के अलावा ईश्वर से कुछ नही चाहिये
था ।
वो
बिलख बिलख कर ईश्वर से अपने कुकर्मों की सजा मांग रहा था, और याचना कर रहा था कि
उसे अपनी बेटी को खो देने जैसी सजा ना दे।
तभी
उनके दरबान ने कहा - सरकार बिटिया आई है, सुनते ही अभियेन्द्र ऐसे भागे जैसे भक्त
को भगवान मिल जाये। रश्मि को देखते ही अभियेन्द्र अपनी बेटी से लिपट गये जैसे किसी
शाख से बेल, यूं लगा जैसे अपने जीवन श्रोत उन्हे मिल गया हो। कुछ पल ज्ञान में आने
के बाद, बोले- तुम कहाँ चली गयी थी, तुम्हे पता है, तुम्हे कहाँ कहाँ नही खोजा,
तुम्हे कुछ हुआ तो नही ..... उनके सवालों की मूसला धार वर्षा को रोकते हुये रश्मि
ने कहा - पिता जी, मै पूरी तरह से ठीक हूँ, और आज मुझे सकुशल घर तक आपके सामने
लाने का पूरा श्रेय उस व्यक्ति को है, जिसका जीवन खत्म करने में आपने कभी कोई कसर
नही छोडी - कौशल व्यास। नाम सुनते ही, अभियेन्द्र के सामने एक ही क्षण में कौशल और
उसके साथ किये गये अत्याचारों की, उसको बल के जोर से चुनाव में पिछले दो बार से
हराने की, उसके सत्यवादी विचारों को दबाने की जो तस्वीर दिखाई दी, आज वो खुद उसको
ना देख सके, एकाएक उनकी आंखे बन्द हो गयी, उन्हे आज अहसास हुआ कि निर्बल वो नही
था, वो ही उससे भयभीत थे, तभी तो उसके निर्दलीय उम्मीद्वार होते हुये भी, वो अपनी
जीत को लेकर आशंकित रहते थे। एकाएक उनके आखों के कोरों से अश्रुधार बह निकली,
जिसमें से उनके पाप भी बह रहे थे।
वो
समझ रहे थे कि उनकी बेटी को एक ऐसा इन्सान मिल गया था, जो उन्हे जिन्दगी की असली
जीत का पाठ पढाना चाह रहा था। आज उन्हे जीत के मायने समझ आ गये थे। उन्हे जीत और
हार से बाहर की परिधि का जीवन दिख रहा था। कुछ भी ना पूछते हुये उन्होने रश्मि से
बस इतना ही कहा - बेटी मुझे खुशी है कि जिस व्यक्ति को मैं छल बल से हराता रहा, आज
उसने तुम्हे अपना निस्वार्थ सहयोग देकर, मुझे जिन्दगी मे हारने से बचा लिया।