वो चुपचाप सहती रही
देती रही जीवन
करती रही पालन
अपने कर्तव्यों का
माफ करती रही
भूल जो अंजानी नही थी
फिर एक दिन
छलक पडा बाँध
सब्र का
बहुत सोचा कैसे दूँ तकलीफ
अपनो की ही
मगर कोई और रास्ता ना था
भटके को राह दिखाने का
एक हल्की सी भृकुटि तनी
और समाप्त हो गये
देती रही जीवन
करती रही पालन
अपने कर्तव्यों का
माफ करती रही
भूल जो अंजानी नही थी
फिर एक दिन
छलक पडा बाँध
सब्र का
बहुत सोचा कैसे दूँ तकलीफ
अपनो की ही
मगर कोई और रास्ता ना था
भटके को राह दिखाने का
एक हल्की सी भृकुटि तनी
और समाप्त हो गये
अनगिनत जीवन
रो पडी थी धरा भी, देख अपनी ही करनी
कि नही चाहा था उसने विनाश
पर क्या करती
आखिर सहन की
कहीं तो सीमा थी
पर आह! धन्य है मानव
इस विपदा मे भी
रो पडी थी धरा भी, देख अपनी ही करनी
कि नही चाहा था उसने विनाश
पर क्या करती
आखिर सहन की
कहीं तो सीमा थी
पर आह! धन्य है मानव
इस विपदा मे भी
नही तजा उसने
विभाजन का धर्म
ढूंढ निकाले उसने
राजनीति के सूत्र
बना ही ली धर्म की दीवारे
राजनीति के सूत्र
बना ही ली धर्म की दीवारे
करने लगा धार्मिक शिनाख्त
छिन्न भिन्न विभक्त शरीरों की
विभाजित कर दिया लाशों के ढेर से
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