बडी खामोशी से हमने
चुन ली खामोशी
बेअदबी ही अदब जबसे
जमाने में हुआ
किससे करे शिकायत किसकी
करे शिकायत
दामन में दागों का
फैशन जरा जोरों पे है
खुदा का शुक्र जो बक्शा
भूल जाने का हुनर
कुछ तो बच गया जिगर
लहू लुहान होने से
तबाहियों के मंजर पे
जाता दिखता है जमाना
बर्बादियां जब तरक्की
की नुमांइन्दगी करती है
बडे शौक से दफन किये
जाइये तहजीबो उसूल
नूर परख पाना हर किसी
के बस की बात नही
जिधर भी देखा उधर मुखौटे
ही मिले
एक मुद्दत से हमने
चेहरा नही देखा
तालियों की गडगडाहटें
बता देती हैं
खुशी का मंजर है या
खुशामद का हुजूम
कुदरत गर्म औ लहू का सर्द मौसम हुआ
कुछ बारिशें है जरूरी इन रेगिस्तानों में