ईश्वर से कुछ ना मांगें हम
सब कुछ तुमसे पाया है
राम सिया से मात पिता की
हम बच्चों पर छाया है
तुम दोनो को संग में देख के
मन हर्षित हो जाता है
अद्भुद सी अनुपम जोडी को
देख के मन यह गाता है
युग युग तक आशीष मिले बस
और नहीं कुछ पाना है
राम सिया से मात पिता की........
कर्म ही धूरी जीवन जिसका
जो सत की सच्ची सूरत
त्याग तपस्या लक्ष्य है जिसका
ममता प्रीत की वो मूरत
इठलाती हूं भाग्य पे अपने
पारस हमने पाया है
राम सिया से मात पिता की........
ईश्वर से कुछ ना मांगें हम
सब कुछ तुमसे पाया है
राम सिया से मात पिता की
हम बच्चों पर छाया है
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (01-06-2022) को चर्चा मंच "जीवन जीने की कला" (चर्चा अंक-4448) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत सुंदर । माता - पिता का साया बना रहे ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लगा सुन्दर प्रस्तुती!
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