कभी कभी अकेलेपन का ,साथ भी मन को भाता है ।
तन्हाई में ही तो मन ,दिल की कही सुन पाता है ॥एकान्त में इक अलग से, सुकून का अनुभव होता है ।
ऐसे में ही तो मन अपनी, अच्छाई बुराई गिन पाता है ॥कुछ ऐसे पल जब हम, बस खुद के लिये जीते है ।
समझ आता है मन को कि, मेरा मुझसे भी इक नाता है ॥कितने अनसुलझे रहस्यों की, ग्रन्थियां खुद-ब-खुद खुल जाती है ।
जीवन की नदिया को अक्सर, इक नया आयाम मिल जाता है ॥उलझे से मन की हर इक, धुंधली धुंध तब छट सी जाती है ।
बीता वक्त चुपके से आ, जीवन का नव-स्वप्न बुन जाता है ॥
कभी कभी अकेलेपन का , साथ भी मन को भाता है ।
तन्हाई में ही तो मन , दिल की कही सुन पाता है ॥