
आखिर क्यों न बनता राज्यपुष्प पलाश। उसमें हाड़कंपाऊ ठंड में मुस्कराते रहने की क्षमता है तो तन जलाने वाली गर्मी में भी हंसते रहने की ताकत। वह औद्योगिक रूप से लाखों लोगों का पेट भरता है, औषधि के रूप में बीमारी दूर भगाता है तो करोड़ों लोगों के जीवन में रंग भी बिखेरता है। इसीलिए अब होली पर ही नहीं हर रोज सिर माथे रहेगा पलाश। राज्यपुष्प घोषित पलाश को बुधवार को पूरा प्रदेश अतिरिक्त सम्मान भाव से देख रहा है। हरी किसी में उत्सुकता है कि आखिर पलाश में ऐसा क्या है जो उसे इतना ऊंचा दर्जा मिला? पलाश कोई छुईमुई समुदाय का नहीं जो छूते ही शर्म से मुरझा जाए। उसमें जहां पलाश 45 से 48 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में भी फूलता है वहीं 3 से 18 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में भी अपना आकर्षण बनाए रखता है। वह खुले प्रकीर्ण वनों में होता है, तो इसे प्यार से पौधारोपण करके भी उगाया जा सकता है। वैसे तो पलाश (अंग्रेजी का ब्यूटिया मोनो स्पर्मा), जिसे कुछ अंचलों में ढाक भी कहा जाता है, का फूल कवियों, चित्रकारों, वैद्यों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। सुर्ख लाल, सफेद, गुलाबी (हल्का) व पीला के रंगों में मिलने वाला राज्यपुष्प को डाक टिकट में राष्ट्रीय स्तर पर महत्व मिल चुका है। वैसे तो यह भारत के लगभग सभी प्रदेशों में पाया जाता है परंतु राज्यपुष्प घोषित होने से प्रदेश में मिर्जापुर व सोनभद्र सहित पूरे विंध्याचल क्षेत्र तथा बुंदेलखंड के सभी जनपदों में उसकी उपस्थिति बहुतायत है। यह क्षेत्र राज्यपुष्प के पोषक होने का गर्व कर सकते हैं। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) के औषधीय पादप विकास योजना के मुख्य अन्वेषक डॉ. कौशल कुमार कहते हैं, होली में जिस टेसू के फूलों से रंग तैयार होता वह कोई और नहीं पलाश ही है। अब वह होली पर ही नहीं हर रोज हमारे सिर माथे पर रहेगा। मूत्रावरोध, चर्मरोग, ज्वर, सोरायसिस, गर्भादान रोकने, नेत्र ज्योति बढ़ाने, जल्दी बुढ़ापा न आने देने के लिए तो लाभकारी है ही, लाख व रंग तैयार करने का औद्योगिक लाभ भी देता है पलाश।
मैने आज से करीब तीन महीने पहले अपने भाई आशीष से एक पलाश का पेड लगाने की इच्छा जाहिर की थी , हम बहुत मुश्किल से कल्यानपुर नर्सरी से इसे लाये थे और अपने घर के सामने पार्क में जब पलाश का पेड लगाया । तब मुझे नही पता था कि इसे भविष्य में इतना बडा गौरव मिलने वाला है । चूंकि मेरे ब्लाग का नाम पलाश है , ये मुझे सदा से प्रिय रहा , इसलिये मैने इसे लगाया भी था । मगर आज मुझे खुशी के साथ गर्व भी है कि अपने राज्य के इस गौरव की खुशबू से हमेशा हमारा पार्क महकेगा ।
मैने आज से करीब तीन महीने पहले अपने भाई आशीष से एक पलाश का पेड लगाने की इच्छा जाहिर की थी , हम बहुत मुश्किल से कल्यानपुर नर्सरी से इसे लाये थे और अपने घर के सामने पार्क में जब पलाश का पेड लगाया । तब मुझे नही पता था कि इसे भविष्य में इतना बडा गौरव मिलने वाला है । चूंकि मेरे ब्लाग का नाम पलाश है , ये मुझे सदा से प्रिय रहा , इसलिये मैने इसे लगाया भी था । मगर आज मुझे खुशी के साथ गर्व भी है कि अपने राज्य के इस गौरव की खुशबू से हमेशा हमारा पार्क महकेगा ।
जमाने की उलझी राहों में , पहचान बने आसान नही ।
जो महके महंगे गुलदस्तों में , तो वो पलाश की शान नही ॥
गर्मी में चटख लाल रंग लिये खिलता है यह फूल, होली के रंगों को सजाता हुआ।
जवाब देंहटाएंनरेन्द्र शर्मा जी की ये पंक्तियाँ...
जवाब देंहटाएंलो, डाल डाल से उठी लपट! लो डाल डाल फूले पलाश।
यह है बसंत की आग, लगा दे आग, जिसे छू ले पलाश॥
लग गयी आग; बन में पलाश, नभ में पलाश, भू पर पलाश।
लो, चली फाग; हो गयी हवा भी रंगभरी छू कर पलाश॥
mubarak ho.
जवाब देंहटाएंउत्तर प्रदेश का राज्य पुष्प बना "पलाश"
जवाब देंहटाएंye to bahut hi khushi ke baat hai
ढेर सारी शुभकामनायें.
पलाश के रंग बिरंगे फूलों के साथ आप को हार्दिक बधाई|
जवाब देंहटाएंआपको बधाई. आपके ब्लॉग शीर्ष पर लिखी बातें ही मनमोहक हैं.
जवाब देंहटाएंये बहुत बढ़िया समाचार
जवाब देंहटाएंपलाश पर सुर्ख पलाश के गौरव भरे क्षण , हमको गौरान्वित कर गए . ये पलाश हमेशा ऐसे ही कुसुमित होता रहे .
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी दी आपने......... और अच्छा भी लगा ये पहले से भी आपके नाम के साथ जुदा है.. बधाई हो.
जवाब देंहटाएं.
नये दसक का नया भारत (भाग- १) : कैसे दूर हो बेरोजगारी ?
बहुत ख़ुशी की बात है....और आपका लगाया हुआ पेड़ खूब बढ़े यही तमन्ना है....
जवाब देंहटाएंab is Palash ke aushdiy guno ki vajah se ko bhi buddha nahi hoga aur na hi aapki rachnaao ki vajah se koi akela
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी,
जवाब देंहटाएंआपको बधाई!
तब तो शुभकामनायें तुम्हे ही दूंगा ...शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंआपको बहुत-बहुत बढ़ायी कि आपकी पसंद और आपके ब्लाग नाम वाला "पलाश "पुष्प उ.प्र.का राज्य-पुष्प भी बन गया है.
जवाब देंहटाएंवैसे केतु-ग्रह की शांति में भी इसका प्रयोग होता है.
अच्छा लगा यह जानकर कि उत्तर प्रदेश ने अपनी गौरवशाली परम्परा और संस्कृति को अब भी जिंदा रखा है , बधाई ।
जवाब देंहटाएंपलाश को बधाई..
जवाब देंहटाएंसुन्दर जानकारी !
जवाब देंहटाएंअब उत्तर प्रदेश केतु-प्रभाव से बचा रहेगा ! :)
बधाई हो पलाश ,
जवाब देंहटाएंराज मुकुट बन गए देश के
हो गए सबसे खास
तुम अति सुंदर , तुम अति कोमल
शुगना की चोंच से लाल
हैं पांख तुम्हारी रूपवती के होंठ
ज्यों डोरे पड़े रूपसी आँख
शुग रीझ रीझ , चलि जात
निज टोंट लाल लखि , रूप समाने
सहज लरत निज जाति
प्यारे प्यारे सुकोमल सुन्दर गात
मन अरझी रह्यो सुन्दरता में
ताते पायो ::राज मुकुट बिलाश ""