जून की
भीषण गर्मी अब व्याकुल करने लगी है , शिशिर ने निश्चय किया कि आज वो पक्का ही कुछ दिन
के लिये आफिस में छुट्टियों की अर्जी दे देगा, और फिर काफी समय से निशान्त से मिला
भी तो नही, कितनी ही बार तो वह बुला चुका है, उसकी शादी में भी वो नही जा सका था। इसी
बहाने कुछ दिन गर्मियां भी कट जायेगीं । और फिर असली आनन्द तो पहाडों में इसी समय है
। आफिस जा कर उसने १० दिनों की छुट्टी ली, और वो मंजूर भी हो गयीं । उसने सोचा कि सीधी
कोई ट्रेन तो है नही कानपुर से द्वाराहाट की , सो उसने हल्दानी तक बस से जाने का मन
बना लिया ।
बस जैसे
जैसे आगे चल रही थी, यादों के पन्ने उसे पीछे ले जा रहे थे । निशान्त जिसके साथ २४
घंटो का साथ था, आज वो उसके पास करीब सात साल बाद मिलने जा रहा है । बातें तो अक्सर
हो जाती है , मगर देखे हुये एक जमाना सा हो गया । जिद्दी भी तो वो कितना है कितनी बार
कहा- अपनी और भाभी जी की एक फोटो तो भेज दो तो कहता है , भाभी को देखना है तो आना पडेगा
।
निशान्त
की शादी भी तो ऐसे हुयी थी जैसे चट मंगनी पट ब्याह । और फिर उस समय मैं ऐसी हालत में
भी तो नही था कि जा सकता । ये और बात थी कि इसका कारण वो आज तक उसे नही बता सका था
, और बताता भी क्या कि अचरा उसे छोड कर चली गयी है , दोस्त की खुशी को वह कम नही करना
चाहता था ।
अचरा का
जाना उसे जितना दुखी कर गया था उससे कहीं ज्यादा उसे आश्चर्य हुआ था । सब कुछ तो
ठीक चल रहा था । अगली सुबह तो मैं उसके घर सबसे मिलने के लिये जाने वाला था , कि शाम
को उसने अपनी एक सहेली से एक पत्र भिजवाया था , जिसमें बस इतना लिखा था - मुझे भूल
जाओ, और अगर कभी भी मुझे प्यार किया है तो मुझसे कुछ भी मत पूँछना । मैने कभी अपने
और अचरा के बारे में किसी को नही बताया था, हमेशा सोचता जब उसके घर वाले राजी हो जायेंगें
तभी सबको उसके बारे में बताऊंगा । मगर जिन्दगी ने मुझे ऐसा मौका ही नही दिया । ये सब
सोचते सोचते कब हल्द्वानी आ गया पता ही नही चला ।
बस से उतर
कर मैने टैक्सी ले ली । पहले तो सोचा कि बिन बताये ही पहुँच जाता हूँ, फिर सोचा कि
नही बता देना चाहिये । यही सोच कर फोन कर दिया ।
हैलो कहते
ही फोन के दूसरी तरफ से जो आवाज आयी, उसको ना पहचान पाने की गलती तो मैं कर ही नही
सकता था । मगर फिर भी, किसी तरह खुद को संभालते हुये मैने कहा - क्या मैं निशान्त से बात कर सकता
हूँ उसने कहा - निशान्त तो अभी बाहर गये हैं , मैने कहा आप कौन बोल रही हैं , दूसरी
तरफ से आवाज आई- मैं मिसेज निशान्त माथुर । आप कौन बोल रहे हैं ? मैने बिना कुछ कहे फोन रख दिया। आखिर कहता भी क्या , जिसे मैं उसके कहने के बाद भी नही भूल सका था , वो मेरे बिना कुछ कहे ही शायद सब भूल चुकी थी ।
मिसेज निशान्त
कोई और नही अचरा ही थी । मुझे कुछ समझ नही आ रहा था, ऐसा लग रहा था कि बस चक्कर आ जायगा
। वो सारे सवाल जो बरसों से खुद से किया करता था , फिर से मुझे परेशान करने लगे।
बस ड्राइवर से इतना ही कह पाया - गाडी हल्द्वानी की ओर मोड लो ।