कभी कभी भीड भरे मंजर में दिल तनहा रह जाता ,
कभी कभी चाह कर भी मन कुछ कह नही पाता ॥कभी कभी दूर, बहुत दूर जाने को मन व्याकुल हो जाता,
कभी कभी खुद को भूला देने को, दिल बेकरार हो जाता ॥कभी कभी बिन बात ही बेवजह ,आसूँ छलक जाता ,
कभी कभी खुद में सिमट के दिल रोने लग जाता ॥कभी कभी दुनिया मे हर शख्स पराया सा हो जाता,
कभी कभी अपना वजूद भी बेगाना लगने लग जाता ॥कभी कभी दिल कितना कुछ, चुपके से सह जाता
कभी कभी इक लफ्ज, विषबुझे तीर सा चुभ जाता ॥कभी कभी लाख कोशिशों पर ,कुछ याद नही आता,
कभी कभी कोई लम्हा, उम्र भर भी भूल नही पाता ॥कभी कभी इम्तेहां-ए जिन्दगी, खत्म नही होता ,
कभी कभी कोई खुद ही, इक इम्तेहां बन जाता ॥कभी कभी सब पा कर भी, हाथ खाली रह जाता ,
कभी कभी सब लुटाने पर भी, दामन भर जाता ॥कभी कभी सावन, निष्ठुर बन आग लगा जाता
कभी कभी तपता रेगिस्तां भी, ना बैरी बन पाता
कभी कभी ख्वाब, इक ख्वाब बन कर रह जाता,
कभी कभी तकदीर से, बहुत ज्यादा मिल जाता ॥