कभी अधूरी प्यास हूँ , कभी खामोश आवाज हूँ ,
कभी धूल मै राहों की , कभी गीत का साज हूँ
कभी किसी का राज हूँ , कभी किसी का नाज हूँ ,
कभी अनबुझ पहेली हूँ कभी तडपती बात हूँ
कभी आइने सी साफ हूँ , कभी पाकीजा आग हूँ ,
कभी मैं शीतल छाया सी ,कभी प्रतीक्षित सौगात हूँ
कभी बहता झरना हूँ, कभी जंजीरों मे जकडी हूँ,
कभी सुहाना मौसम हूं , कभी मचलती बरसात हूँ
कभी तन्हा जीवन हूँ , कभी महफिल की शान हूँ
कभी हंसी सुबह हूँ तो , कभी बिखरती रात हूँ
कभी रिवाजो की गठरी , कभी काठ की पुतली हूँ
कभी लाज शर्म की मूरत , कभी मै टूटी साख हूँ
कभी बोझ अपनो का हूँ , कभी अमानत परायी हूँ
कभी सिमट्ती धरती हूँ , कभी स्वच्छंद आकाश हूँ
बाबुल की चहेती गुडिया हूँ, खुद के लिये "पलाश" हूँ
पर सदा ही मै एक नारी हूँ, कभी आम कभी खास हूँ