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शनिवार, 11 सितंबर 2010

अल्लाह और ईश्वर का संगम

आज देश एक तरफ गणेश चतुर्थी मना रहा है तो दूसरी तरफ ईद की मुबारक रात है , इतना कुछ खुशी मनाने को है फिर भी मुझे कुछ अधूरा सा लग रहा है । कितना अच्छा होता मगर हम मिलजुल कर दोनो ही त्योहार मनाते। और ये सिर्फ मेरी ही नही ईश्वर और अल्लाह दोनो की भी ख्वाइश है जो कुछ इस तरह बयां की गयी है ....................


ना बहा रक्त का समन्दर ना बना इस धरा को कानन
संदेश ये देने को आये अल्लाह के संग में गजानन ॥

लडते ही रह गये देखो मौलवी और पुजारी
कोई कहे मंदिर बने कोई कहे मस्जिद की बारी
गणपति को जन्मदिन की अल्लाह देते आज बधाई
और् तोहफे में ईद की इतनी मुबारक रात  आई
ईद की मुबारकबाद दे रहे खुदा को गजानन
संदेश ये देने को आये अल्लाह के संग में गजानन ॥


सुन सको तो सुन लो हमसे चाहता है क्या खुदा
मन की आँखे खोल देखो  नही राम रहीम से जुदा
ईट की इमारतों से तो घर भी बसा करते नही
खून की नदियों किनारे मंदिर  बना करते नही
हाथ जोडे कह रहे प्रभु झगडे का कर दो समापन
संदेश ये देने को आये अल्लाह के संग में गजानन ॥

ईद की इस रात मे खुदा बन्दे से ईदी माँग रहा
गणपति जन्मदिन का उपहार भक्तों से माँग रहा ,
हो सके तो दे दो हमको अपने दिलों में तुम जगह
छोड दो बस आज अभी से सारी लड्ने की वजह ,
एक ही साथ बना दो दोनो का छोटा सा आसन ।
संदेश ये देने को आये अल्लाह के संग में गजानन ॥

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