शमा कहती नही, खामोश रहकर, मिटती रहती है,
पिघलती मोम ही, उसके, जख्मों की कहानी है ॥भले मिटना ही है उसके, हाथों की लकीरों में,
मगर सच ये भी कि वो ही, उजालों की निशानी है॥
मोहबब्त में, खुशी की ख्वाइशें, हर कोई रखता है,
मगर ये इश्क का दरिया, तो दर्दों की सुनामी है॥ नही होती मोहब्ब्त सिर्फ, वादों या इरादों से,
बजार- ए - इश्क में कीमत, तो इसकी भी चुकानी है॥नही होता कोई अब तो दीवाना, मजनूं के जैसा,
मोहब्बत अब नही दिल की, दिमागों की जुबानी है ॥जमाने में सभी यूँ तो, है दावा प्रेम, का करते,
कई सरकारी वादों से, किसी दिन टूट जानी है ॥वही बचता है जो, बेखौफ हो, डुबकी लगाता है,
जो बच बच के, उतरता है, खत्म उसकी जवानी है॥