कुछ भी कर लो साथी
तुमसे दूर नही हो पायेगे
ये भी सच है इस दुनिया
में साथ नही रह पायेगे
कौन लगायेगा पहरे
दिलवर मेरी धडकन पर
कैसे रोकेगा ये जग
अब
तेरे मन मन्दिर मे
रहने पर
कुछ भी कर ये ले दुनिया,
ईश तुम्हे ही मानेगे
ये भी सच है प्रीत
की माला, अर्पित कर ना पायेगे
कैसे मिटा सकेगा कोई
तस्वीर तेरी इन नैनों
से
कैसे तोड सकेगा जग
अब
बन्धन बाँधे जो दिल के
कुछ भी कर ले ये दुनिया,
तुमको ही हम चाहेगें
ये भी सच है ये अरमां,
हम पूरा कर ना पायेगे
करने को तो सब कर लेते
जो अब तक ना कर पाये
हैं
जग की तो बात ही क्या
किस्मत से टकरा जाते
है
तज देते हम गैरों को,
अपनों से मुंह मोड ना पायेगे
ना तोड सकेगें अपनों
का दिल, खुद को ही मिटा जायेगें
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (05-03-2016) को "दूर से निशाना" (चर्चा अंक-2272) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन प्रस्तुति, महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें।
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