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शुक्रवार, 31 मार्च 2017

कैसे कटेगा ये पहाड सा जीवन?... Why Walking Alone


ये मेरे जीवन में पहला अवसर नही था जब मैं इस प्रश्न का उत्तर दे रही थी। अब तक तो मुझे इस प्रश्न की आदत सी हो गयी थी, कुछ लोग मेरे कार्य की प्रसंशा करने के बाद य्ह प्रश्न पूंछते थे, कुछ की बातों का आरम्भ ही इस प्रश्न से होता था। आप भी सोच रहे होंगे कि प्रश्न पूंछने की चर्चा तो इतनी कर ली किन्तु प्रश्न अभी तक नही बताया, लिखूंगी वो भी लिखूंगी उसके पहले अपने बारे में कुछ बताती हूँ- मै अपने जीवन में पैतालीस बसन्त देख चुकी हूँ, और इन पैतालीस बसन्तों के पार होने में देख चुकी हूँ जीवन के अनन्त उतार चढाव, अनुभव कर चुकी हूँ नाना प्रकार के सुख दुख, सीख चुकी हूँ जीवन को जीना। किन्तु शायद लोग मुझसे ज्यादा मेरे लिये फिक्रमंद रहते हैं, और इसीलिये अक्सर लोग पूँछ लेते हैं- मीरा जी कैसे काटेंगीं ये पहाड सा जीवन? मीरा जी कैसे काटती है आप अपना खाली समय? मीरा जी क्या अकेले घर आपको काटने को नही दौडता? वगैरह वगैरह...। बार नाकाम कोशिश करती हूँ कि मेरी मुस्कराहट ही मेरा जवाब बन जाय किन्तु हर बार मेरी निश्छल हंसी से वह मेरे उत्तर ना देने की बात को समझ नही पाते या समझना नही चाहते या उन्हे लगता है कि शायद इस अर्धप्रौढा महिला ने उनके प्रश्न को समझा नही तो वह अपने प्रश्न में और शब्दों को सम्मिलित करते हुये प्रश्न का स्वरूप इस तरह बदलते है कि प्रश्न की आत्मा पूर्णतः जीवित रहे|
जब पूर्णतः मै आस्वश्त हो जाती हूँ कि प्रश्नकृता उत्तर का भिक्षुक है तो फिर उसको निराश करके पाप की भागीदार बनने से श्रेयश्कर लगता है कि भिक्षुक को उचित भिक्षा दी जाय।
फिर उत्तर की भिक्षा के रूप में उसकी झोली में डाल देती हूँ- अपनी बेबसी, अपना दुख, अपना दुर्भाग्य और अपनी लाचारी…..। यह सब पाकर वह भिक्षुक ऐसे प्रसन्न होता है जैसे किसी भिखारी को आशा एक रुपये या दो रुपये की हो और उसे सौ या दो सौ रुपये मिल जाय।
अब भिक्षुक के मन में भाव जगता कि वह तो एक दाता है- सामने वाला तो दीन हीन कमजोर लाचार किस्मत का मारा है, फिर वह मुझे सांत्वना देकर अपने दाता होने की संतुष्टि करता है. और बुनने लगता है झूठी सहानुभूति, अपनेपन का जाल।
यकीन मानिये मुझे आज तक किसी अविवाहित पुरुष के प्रति मन में ऐसी सहानुभूति नही हुयी, शायद मेरा ह्दय इतना उदार नही। मुझे कभी ऐसी आवश्यकता महसूस नही हुयी कि किसी से भी( ना स्त्री ना पुरुष) उसकी उम्र या कमाई पूँछी जाय।
किन्तु आज मै मेरे सभी अपरिचित और परिचित प्रश्नकॄताओं से कुछ कहना भी चाहती हूँ और पूंछना भी चाहती हूँ- कहना चाहती हूँ कि क्या वास्तव में जीवन काटने वाली वस्तु है और यदि है तो क्या विवाह वो कैंची है जो जीवन काटने में मदद करती है। ईश्वर ने यह जीवन जीने के लिये दिया है ना कि काटने के लिये।
और पूँछना चाहती हूँ कि मेरे अविवाहित होने पर क्या वाकई उनका मन मेरे जीवन के प्रति चिन्तित होता है? क्यों एक अविवाहित लडकी के चाल चलन पर प्रश्न किये जाते है कभी प्रत्यक्ष रूप से कभी अप्रत्यक्ष रूप से। मैंने बहुत सारे लोगों को हमेशा शालीनता से जवाब दिया है और देती रहूंगी, किसी उत्तर भिक्षुक को निराश नही करूगीं किन्तु मुझे वापस में उनसे कुछ भी नही चाहिये- नही चाहिये छल पूर्ण आमंत्रण, नही चाहिये छदम वार्ता, नही चाहिये आभासी सहानुभूति पूर्ण व्यव्हार। आज कई सारे कटु अनुभवों के आधार पर कह सकती हूँ कि एक लडकी मुख्यतः अविवाहित लडकी समाज में अपनी योग्यता के आधार पर अपने जीवन को एक ऐसे मुकाम पर पहुँचाती है जहाँ तक शादीशुदा पुरुष सामान्यतः नही पहुंच पाते तो उसको पीछे करने का बडा ही आसान सा तरीका होना है उसके अकेलेपन के प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त करना। फिर सहानुभूति की सीढी चढकर उसके पतन की कोशिश करना ।
उपरोक्त शब्दों से किसी के भी मन को ढेस पहुंची हो तो हदय से क्षमाप्रार्थी हूँ। यह मात्र मीरा के जीवन के अनुभव हैं, मुझे मित्र होने के नाते उसने माध्यम बनाया, उसको ऐसा लगता है कि उसके अनुभवों को मैं शब्दों की माला में सुन्दरता और सजीवता से पिरो सकती हूँ। 
              मीरा की बात के अन्त में, मैं दो शब्दों में अपनी बात कहूंगी- मीरा एक ऐसी महिला है जो मेरे साथ साथ ना जाने कितनी स्त्रियों, पुरुषों की आदर्श है, लोग सीखते है उससे जीवन जीना, स्वच्छंद हंसी उसका ऐसा आभूषण है जो उसके व्यक्तित्व को सदैव निखारता है। मीरा एकाकी होकर भी आज सफलता के एक ऐसे मुकाम पर है जहाँ से आप उससे प्रेरणा ले सकते हैं। यदि सम्भव हो तो अब किसी भी मीरा के जीवन में उत्तर का याचक बन कर ना आइयेगा। क्योंकि निजी प्रश्नों को निजी लोग ही पूँछें तो उचित भी लगता है और शोभनीय भी। और न कीजिए चिंता मीरा के लिए क्यो कि वह जीवन जीने मे विश्वास करती है काटने मे नही । कोई भी विष प्याला देकर उससे जीने की कला का हरण नही कर सकता। स्त्री के शक्ति रूप दुर्गा की स्तुति करने वाले क्यों यह ध्यान नही करते कि स्त्री कभी भी जीवन की खुशियों के लिये पुरुष पर निर्भर नही है। 

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन और केदारनाथ अग्रवाल में शामिल किया गया है।कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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