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रविवार, 31 जनवरी 2021

संकट चौथ (गणेश चतुर्थी ) की एक लोक कथा

 


एकै रहै देवरानी जिठानी। जिठानी के घर रही सम्पन्नता, औ बिचारी देवरानी रही गरीब। तो देवरानी बिचारी, जेठानी के घर करती रहै – घर का काम काज। औ उनके घर से जौन कुछो मिल जात रहै, उहिसे अपने बच्चन का पेट पालती रहै।

अब एक दिन पडी, संकठै। अब उनके घरै मा तो कुछ रहै ना, तो कहेन अपने लडका से- अरे  जाओ रे, खेते परै से कनई तोड के लै आओ। अब वहै कनई से बनायेन कनई के थोथा, और सकठ महारानी की पूजा करेन। कहिन- माता अब तुम जउन कुछ दीहे हो, वही तुमका अर्पित है।

पूजा करिके, भोग लगा के पर रहीं।

अब रात मां आई सकठ माता। दरवाजा खटकाइन बोली दरवाजा खोलो – हम सकठ महरानी हैं, तो देवरानी बोली- अरे माता आ जाओ, दुआर तो खुलै है। इहाँ कउनो, दरवाजा कुंडी तो है नाही।

सकठ माता घर के अंदर आ गयी।

थोडी देर मे बोली- अरे सुनो हमका भूख लगी है।

देवरानी बोली- माता इहाँ मिठाई लड्डू तो है नाही, कनई के थोथा बनाये है, धरे हैं खा लेओ।

सकठ माता ने प्रेम से कनई के थोथा खाये। फिर थोडी देर में बोली, अरे सुनो- हमका पियास लगी है।

देवरानी बोली-अरे माता, देखो उहाँ किनारी गगरी मटकी धरी है, जित्ता चाहे पी लेओ।

सकठ माता ने पानी पिया। फिर थोडी देर मे बोली- हमको बहुत जोर से लगी है

देवरानी बोली- अरे महरानी, अरे महरानी अब इत्ती रात मा कहां जइहो, सब जगह लिपा पुता पडा है, चाहे जहाँ कर लो, ह्म सुबह उठ के फेक देबे।

अब जब सुबह देवरानी उठी, तो देखी, जिधर देखो उधर सोने की चाकी, सोने की चाकी।

अब अपना, उनके बच्चा, सब उठा, उठा, धरने लगे। सकठ माता ने रात मे सारे घर मे सोना ही सोना कर दिया था। सब समेटते समेटते हुयी गयी दुपहर।

इधर जेठानी भूख से तिलमिलाती हुयी आई, बोली- अरे का है, सुबह से महरानी जी के दर्सन ही नही है, कल की बरते उपासी हमारी बहुरिया, भूख से बिलबिला रही हैं, सारा काम पडा है, और देवी जी को आने की फुरसत ही नही है।

देवरानी बहुत नम्रता से बोली- जीजी कल तक हम तुम्हारे घर का सब काम करती थी, जो कहती थी सब सुनती थी, तुम्हारा दिया ही खाती थी, अब हमको सकठ माता ने दिया है, अबसे हम आपके घर नही आयेंगी।

जैठानी को बडा अचरज हुआ, सोची एक रात में ऐसा क्या हो गया। बडी उत्सुक्ता से बोली- अइसा क्या मिल गया। देवरानी थी सीधी सादी,  निष्कपट, रात की सारी कहानी सुना दी।

अब जेठानी ने अपने घर आ कर सारी कहानी सुनाई। साल भर अपना सारा धन सामान जमीन में गाढती रहीं और सकठ चौथ का इंतजार करती रहीं।

सकठ चौथ वाले दिन अपने लडके से कनई मंगा कर उसके थोथे बनाई। पूजा करके लेट गयी। रात में दरवाजे पर आवाज आई- अरे दरवाजा खोलो। वो तो साल भर से इसी छन का इन्तजार कर रहीं थी।

बोली- अरे माता आ जाओ, दुआर तो खुलै है। इहाँ कउनो, दरवाजा कुंडी तो है नाही।

सकठ माता घर के अंदर आ गयी।

थोडी देर मे बोली- अरे सुनो हमका भूख लगी है।

जेठानी बोली- माता इहाँ मिठाई लड्डू तो है नाही, कनई के थोथा बनाये है, धरे हैं खा लेओ।

सकठ माता ने प्रेम से कनई के थोथा खाये। फिर थोडी देर में बोली, अरे सुनो- हमका पियास लगी है।

जेठानी बोली-अरे माता, देखो उहाँ किनारी गगरी मटकी धरी है, जित्ता चाहे पी लेओ।

सकठ माता ने पानी पिया। फिर थोडी देर मे बोली- हमको बहुत जोर से लगी है

जेठानी बोली- अरे महरानी, सब जगह लिपा पुता पडा है, चाहे जहाँ कर लो, ह्म सुबह उठ के फेक देबे।

अब जब सुबह जेठानी उठी, तो पैर धरते ही फिसल के गिर पडी, अब तो जो उठे वही फिसल फिसल गिरे। सारी घर में दुर्गंध भरी थी। किसी तरह सफाई करते कराती, गुस्से से आग बबूला होती पहुंची देवरानी के घर और बोली- काहे रे हमका सब उल्टा उल्टा बताई रहो। सारे घर मा नरक हुई रहा है।

तब देवरानी ने नम्रता से कहा- जिज्जी, हम तो सब सच ही बताया रहै, मगर हमै पास तो कुछ रहिबै नाही, मगर तुमहरे पास रहै, और तुम झूठ बोली, अब सकठ माता से का छुपा है।

जेठानी को अपनी गलती का अहसास हुआ। घर आकर सकठ महरानी की पूजा करिन, माफी मागिन कि माता हमका माफ करो। फिर से उनके घर मा सब ठीक हुईगा।

जइसे उनके दिन बहुरे, वैसे सबके दिन बहुरे।

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज सोमवार 01 फरवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. जइसे उनके दिन बहुरे, वैसे सबके दिन बहुरे
    आमीन

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  3. उत्तर
    1. प्रणाम महोदय,
      पहले हमने टिप्पणियों पर स्वीकृति नही लगाई थी, किन्तु कुछ लोग असामान्य टिप्प्णी भी लिख देते थे, जिस कारण से मुझे ऐसा करना पडा। आशा करती हूँ आप मेरी समस्या को समझ सकेगें, और इसी कारण ह्म आग्रह को पूर्ण नही कर सकते।
      ब्लाग पर आने अओर लिख्ने के लिये हार्दिक आभार

      हटाएं

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