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शुक्रवार, 27 अगस्त 2021

हमारी तरह

तू भी हमारी तरह

घिरा है अनगिनत तारों से

इनमें से कई हैं अंजाने

कुछ से हूं मै परिचित

मगर कोई एक है जो है

मेरे बहुत करीब 

मगर ये हाथ भर की दूरी

सदियों से अपनी जगह है

ना मैं छोड़ पा रही हूं, 

झूठा अभिमान

ना तुम भूल पा रहे हो, 

कड़वा अतीत

किन्तु टूटता भी नहीं

प्रेम का बन्धन

ना तुमने कोई और राह चुनी

ना मैं कहीं मुड़ कर गई

समय निरपेक्ष रूप से

करता रहा मूल्यांकन

हमारे भावों और स्वभावों का

और फिर कर दिया हमें, 

चेतन से जड़

अब चाह कर भी नहीं हो सकते

हम एक इकाई

बस चिरकाल तक

समय से बंधे, 

जड़त्व से बंधे

एक हाथ की इस दूरी से

निभाते जाना प्रेम 

तू भी हमारी तरह

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 28 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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