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सोमवार, 11 जुलाई 2022

देश का अगला राष्ट्रपति, कौन?


२०२२ की शुरुआत के साथ ही साथ, सत्ता के गलियारों में एक चर्चा,जो  रह रह कर साल भर जोर पकडती रही, वह रही -अगले राष्टपति का नाम । जुलाई २०२२ को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल समाप्त होने जा रहा है, और इस बात आज तय है कि कोविंद जी दुबारा राष्ट्रपति होंगें, तो ऐसी स्थिति में, चाहे वह एक आम आदमी हो या वरिष्ठ पत्रकार, अपने अपने बौधिक स्तर पर सभी यह आंकलन करने की कोशिश करने लगे हैं कि देश का अगला राष्ट्रपति कौन?

ये मेरा विश्वास है कि आज भी देश के संविधान और प्रणाली पर आज भी एक आम आदमी का अटूट विश्वास है, और वह राष्टपति के रूप में एक ऐसे व्यक्ति को देखना चाहती है जो उसके इस विश्वास को और दॄढता प्रदान करे।

कुछ नाम जो इस गरिमामयी पद के लिये मीडिया के माध्यम से समय समय पर उभर कर आते रहे, निश्चित तौर पर वह सभी, इस पद की संवैधानिक योग्यता के मापदंडों पर खरे उतरते थे

२०२२ के आरंभ में अगले राष्ट्रपति के तौर पर आंनदी बेन पटेल, आरिफ मोहम्मद खान, वेकैंया नायाडू और थावरचंद गहलोत का नाम काफी चर्चा में रहा, फिर अचानक से जून महीने में यह सभी नाम एकाएक गायब हो गये और दो नये नामों से सारा मीडिया भर गया द्रौपदी मुर्मू और यश्वंत सिन्हा। दोनो ही व्यक्तितव इस गरिमामयी पद से लिये योग्यता रखते हैं किंतु राजनीतिक दल और मीडिया दोनो ही योग्यता की नही अपितु उनकी जातीय और क्षेत्रीय मूल्यों को उनकी विशेषता बतलाते हुये नजर आते हैं, कोई द्रौपदी मुर्मू को महिला के तौर पर प्रचारित कर रहा है कोई आदिवासी नाम के ट्रंप कार्ड का उपयोग कर रहा है, बहुत कम ही जगहों पर द्रौपदी मुर्मू और यशवंत सिन्हा की उपलब्धियों, योग्यताओं और विशेषताओं का तुलनात्मक अध्ययन हो रहा है। 

यहां पर एक प्रश्न और है जो उभरता है कि इस चुनाव में उम्मीदवार के समुदाय की कितनी भूमिका है, और क्या समुदाय की भूमिका होनी चाहिये 

-- क्या देश का यह सर्वोच्च पद भी समुदाय की सीमा से मुक्त नहीं?

-- क्या देश के इस पद पर पदस्थ व्यक्ति को महिला या पुरुष के रूप में देखना उचित है? 

-- क्या इस पद पर महिला को आसीन करने मात्र से महिला सशस्त्रीकरण की सार्थकता सिद्ध की जा सकती है?

-- आदिवासी समाज का विकास सिर्फ एक आदिवासी महिला को राष्ट्रपति के लिये नामांकित करने मात्र से ही किया जा सकता है?

-- क्या देश के प्रथम नागरिक को भी समुदायों की जंजीरों में जकडना उचित है? 

-- यदि ऐसा नही है तो फिर क्या अर्थ है ऐसी विवेचनाओं का।

-- क्या  मायने हैं इन देश के सर्वोच्च पद के लिये नामांकित नामों को समुदायों के चश्मे से देखने या देखाने के। 

ऐसे और भी कई प्रश्न हैं जो एक भारतीय के मन में उठते रहते हैं। जो सिर्फ और सिर्फ प्रश्न ही रह जाते है।

उपरोक्त चित्र कुछ दिन पूर्व ही एक अखबार में प्रकाशित किया गया। 

हमारा बुद्धिजीवी मीडिया यहीं पर नही रुकता। विष्लेशण की स्वतंत्रता का सदुपयोग करते हुये, हमारा मीडिया अभी तक के राष्ट्रपतियों को उनके जाति, धर्म और लिंग के आधार पर भी वर्गीकृत करते हुये जनता के सामने हमारे पूर्व राष्ट्रपतियों की एक नयी तस्वीर पेश करता है 


राष्ट्रपति होने की योग्यतायेंः

बचपन में नागरिक शास्त्र में हमें भारत के राष्ट्रपति होने की योग्यतायें पढाई गई थी, जिनका आज शायद ही कहीं कोई जिक्र करता दिखे, 

आखिर हम कैसे भूल सकते हैं संविधान की वह मूल भावना, जिससे वह अपने राष्ट्रपति को देखता है 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 58 के अनुसार:
1. भारत का नागरिक होना अनिवार्य है.
2. कम से कम 35 वर्ष की आयु होनी चाहिए.
3. वह व्यक्ति किसी भी लाभ के पद पर कार्यरत न हो.
4. वह लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता पूरी करता हो.

स्त्रोत-- https://www.jagranjosh.com/general-knowledge/how-can-you-become-the-president-of-india-in-hindi-1500039342-2)

कैसा राष्ट्रपति चाहते है भारतवासी?

भले ही भारतीय संविधान के अनुसार, एक आम नागरिक राष्ट्रपति चुनाव में सीधे तौर पर भाग नहीं ले सकता, किन्तु हमारे सांसद और विधायक जो इस प्रकिया में भाग लेते है, वह जनता के मत का परोक्ष रूप से प्रतिनिधित्व ही तो करते हैं। हम भारतवासी आज इस पग पर एक ऐसे व्यक्ति को देखना चाहते हैं जिसे ना तो भविष्य में पुनः एक और बार रबर स्टैंप कहा जाय और ना ही गूंगी गुडिया। 

हम एक ऐसे व्यक्ति को इस पद पर देखना चाहते है जो हम भारत्वासियों को कम से कम यह संदेश तो दे सके कि भारतीय संविधान में भारत के राष्ट्रपति को क्या क्या अधिकार प्राप्त है। वरना एक आप नागरिक तो बस यह जानता है कि भारत में राष्ट्रपति या तो किसी की फासी की सजा निरस्त कर सकता है या फिर २६ जनवरी को तीनो सेनाओं की सलामी लेता है। 

           कम से कम इस गरिमापूर्ण पद को राजनीतिक रंग में रंगने के प्रयासों से जनता की भावनाओं को ही ढेस लगती है, हमारे राजनीतिज्ञों को इस बात को नजरंदाज ना करते हुये, योग्य व्यक्ति को ही राष्टपति भवन की गरिमा सौंपनी चाहिये, और यह कार्य सभी राजनितिक दलों को अपने अपने स्वार्थों और लाभो से ऊपर उठ कर करना होगा, तभी संविधान का सही मायनों मे सम्मान निश्चित किया जा सकेगा। 

* चित्रो के लिये गूगल का आभार

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (13-07-2022) को चर्चा मंच      "सिसक रही अब छाँव है"   (चर्चा-अंक 4489)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  2. सही लिखा आपने सिर्फ रबड़ स्टैंप न हो राष्ट्रपति ,जो वाकई अपने होने का एहसास देश को करवाएं वो ही इस प्रतिष्ठित पद के लिए चुनना उपयुक्त है।

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