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गुरुवार, 26 अगस्त 2021

तोल के बोल



आज कक्षा में एक विद्यार्थी को डांटते हुये जब मैने ने कहा- कि तुम पढाई में बिल्कुल भी मन नही लगाते हो, तभी तुम्हारे अंक बिल्कुल भी अच्छे नहीं आते। खेल कूद के अलावा जरा पढाई पर भी ध्यान दो। तो वह नन्हा सा बच्चा मासूमियत से बोला- मैडम जी ये बिल्कुल भी क्या होता है? एक पल को तो मुझे बहुत गुस्सा आया, लगा जैसे मेरा मजाक बनाते हुये यह प्रश्न पूंछ रहा है, मगर दूसरे ही पल मेरे मन ने कहा- कौशल्या, जरा देख तो इसकी उम्र, क्या बहुत मुंकिन नही कि इस पांच् छः साल के बच्चे को वाकई इसका मतलब ना पता हो। 
तब हल्का सा मुस्कुराते हुये मैने कहा- रोहन जाओ तो अपना टिफ़िन ले कर आओ। 
रोहन जल्दी से अपनी सीट पर गया और टिफिन ला कर मुझे दे दिया। 
लंच का पीरियड इस क्लास के तुरंत बाद था। 
मैने रोहन का टिफिन खोलते हुये पूंछा- तुमने अभी कितना टिफिन खाया है?
रोहन को कुछ समझ नही आ रहा था कि उसकी टीचर ऐसा क्यों पूंछ रही हैं जबकि लंच तो इस क्लास के बाद होगा।
उसके चेहरे पर एक बडा सा प्रश्नवाचक तैर रहा था, उसी मनः स्थिति में उसने धीरे से कहा- मैडम जी, टिफिन तो लंच  पीरियड में खाता हूं ना, अभी तो मैने बिल्कुल भी नही खाया। 
मैने उसके सिर पर हाथ फेरते हुये कहा- हां रोहन जब किसी काम की हम शुरुआत ही नही करते, या कोई चीज़ होती ही नही है तब उसे कहते हैं बिल्कुल भी नही। 
ऐसा लगा जैसे रोहन इस बात को बहुत अच्छे से समझ गया हो, उसी भोलेपन से बोला- मैडम जी- तब तो आप बिल्कुल भी सही नहीं कह रहीं थी क्योकिं मै थोडा थोडा सा तो पढता हूं और थोडे थोडे से नंबर भी लाता हूं। 
तभी लंच की बेल बज गयी। रोहन मुझसे पूंछकर अपनी सीट पर जा कर टिफिन खोलने लगाऔर मै बिल्कुल भी नहीं का सही प्रयोग ढूंढते हुये क्लास से बाहर आ गयी। 

शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

पराया अपना

 


बडी अजीब सी कशकमश में हूं

कैसे बनता है कोई अपना किसी का

और कौन से मापदंड है जो

परिभाषित करते है किसी को पराया

क्या मै ये मान लूं कि रक्त की बूंद ही है

जो एक शरीर को दूसरे शरीर से

अपने शब्द के बंधन में जोड देती है

फिर वो अदॄश्य सी बूंद किस चीज की है

जो मन पर गिरती है, और पिघलकर

जुड जाते है दो  पराये मन

क्या तब भी विलुप्त नही होती

परायेपन की दीवार

आखिर क्यों होता है ऐसा

कि जिसे मन अपने के रूप में करता है स्वीकार

समाज उसे पराये की संज्ञा देता है

और कई कई बार उम्र के अंतिम छोर तक

तन बंधा तो रहता है अपने शब्द की डोर से

मगर अंतर्मन हर पल उसे पराये से ही

करता रहता है संबोधित

काश किसी दिन कही से कोई आकर

बता जाये कोई ऐसा विकल्प

जिससे बन सकूं किसी का संपूर्ण अपना

या संपूर्ण पराया

कि ये आधे अपने आधे पराये

के बीच खोता झूलता

थकता जा रहा है मन

और मेरा स्वयं का अपना मन ही

होता जा रहा है मुझसे पराया

गुरुवार, 12 अगस्त 2021

बवाल हो जायेगा

रही खामोश तो सवाल हो जायेगा

कही जो बात तो बवाल हो जायेगा

आंख नम हो तो छुपा लेना चश्मे में

दिखीं उदास, तो बवाल हो जायेगा

बात दिल की पन्नो पे उतारिये ना

पढेगें अपने तो बवाल हो जायेगा

पलट के सोच ना अब बीती बातों को

ख्वाब फिर लिपटे तो बवाल हो जायगा

जो भी सामने है, बस वही मंजिल तेरी

काश की आस में ,बवाल हो जायेगा

तकदीर के रास्ते, तेरी हथेली में पलाश

पकड मेहनत की बांहे, बवाल हो जायेगा

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021

हाँ याद तेरी आती बडी

 हर बात नहीं तुमको बताते हैं बाबू जी,

छुपाते हैं बाबू जी, पर याद तेरी आती बडी

हर जिद मेरी, खुशी खुशी, पूरी करीं तुमने

सपने मेरे अपने किये जो देखे थे मैनें

अब किससे करे जिद ये बताओ ना बाबू जी, समझाओ न बाबू जी

हाँ याद तेरी आती बडी

हर बात नहीं तुमको बताते हैं बाबू जी,

छुपाते हैं बाबू जी, पर याद तेरी आती बडी

कहते तो थे, बिटिया नहीं बेटा हूं मै तेरा

रौनक हूं तेरे घर की औ टुकडा हूं मै तेरा

फिर क्यूं तेरे आंगन नही रह पाई बाबू जी, बतलाओ ना बाबू जी

हाँ याद तेरी आती बडी

हर बात नहीं तुमको बताते हैं बाबू जी,

छुपाते हैं बाबू जी, पर याद तेरी आती बडी


जब रोये कभी झूठ- मूठ, तुमने मनाया

गोदी में बिठाकर, मुझे लड्डू भी खिलाया

है कौन तेरे जैसा दुनिया में बाबू जी, दिखलाओ ना बाबू जी

हाँ याद तेरी आती बडी

हर बात नहीं तुमको बताते हैं बाबू जी,

छुपाते हैं बाबू जी, पर याद तेरी आती बडी


जन्मी तुम्हारे घर में, रही फिर भी पराई

ससुराल में भी मन की कभी कर नही पाई

आखिर कहाँ अधिकार जताऊं मै बाबू जी, बतलाओ ना बाबू जी

हाँ याद तेरी आती बडी

हर बात नहीं तुमको बताते हैं बाबू जी,

छुपाते हैं बाबू जी, पर याद तेरी आती बडी
* चित्रों के लिये गूगल का आभार

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