पलाश सिर्फ अपनी डाल पर लगता है और खिल कर धरती पर गिर जाता है। वह सिर्फ अपने लिए अपनी डाल पर ही सीमित रहता है। और डाल से अलग होते ही अपने अस्तित्व को समाप्त कर देता है। यही है उसका पूर्ण समर्पण उस डाल के प्रति जिसने उसको जीवन दिया ।
गुरुवार, 26 अगस्त 2021
तोल के बोल
शुक्रवार, 20 अगस्त 2021
पराया अपना
बडी अजीब सी
कशकमश में हूं
कैसे बनता है
कोई अपना किसी का
और कौन से मापदंड
है जो
परिभाषित करते
है किसी को पराया
क्या मै ये
मान लूं कि रक्त की बूंद ही है
जो एक शरीर
को दूसरे शरीर से
अपने शब्द के
बंधन में जोड देती है
फिर वो अदॄश्य
सी बूंद किस चीज की है
जो मन पर गिरती
है, और पिघलकर
जुड जाते है
दो पराये मन
क्या तब भी
विलुप्त नही होती
परायेपन की
दीवार
आखिर क्यों
होता है ऐसा
कि जिसे मन
अपने के रूप में करता है स्वीकार
समाज उसे पराये
की संज्ञा देता है
और कई कई बार
उम्र के अंतिम छोर तक
तन बंधा तो
रहता है अपने शब्द की डोर से
मगर अंतर्मन
हर पल उसे पराये से ही
करता रहता है
संबोधित
काश किसी दिन
कही से कोई आकर
बता जाये कोई
ऐसा विकल्प
जिससे बन सकूं किसी का संपूर्ण अपना
या संपूर्ण
पराया
कि ये आधे अपने
आधे पराये
के बीच खोता
झूलता
थकता जा रहा
है मन
और मेरा स्वयं
का अपना मन ही
होता जा रहा है मुझसे पराया
गुरुवार, 12 अगस्त 2021
बवाल हो जायेगा
कही जो बात
तो बवाल हो जायेगा
आंख नम हो तो छुपा लेना चश्मे में
दिखीं उदास, तो बवाल हो जायेगा
बात दिल की पन्नो पे उतारिये ना
पढेगें अपने तो बवाल हो जायेगा
पलट के सोच ना अब बीती बातों को
ख्वाब फिर लिपटे
तो बवाल हो जायगा
जो भी सामने है, बस वही मंजिल तेरी
काश की आस में ,बवाल हो जायेगा
तकदीर के रास्ते, तेरी हथेली में पलाश
पकड मेहनत की
बांहे, बवाल हो जायेगा
शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021
हाँ याद तेरी आती बडी
छुपाते हैं बाबू जी,
पर याद तेरी आती बडी
हर जिद मेरी, खुशी
खुशी, पूरी करीं तुमने
सपने मेरे अपने किये
जो देखे थे मैनें
अब किससे करे जिद ये
बताओ ना बाबू जी, समझाओ न बाबू जी
हाँ याद तेरी आती बडी
हर बात नहीं तुमको
बताते हैं बाबू जी,
छुपाते हैं बाबू जी,
पर याद तेरी आती बडी
रौनक हूं तेरे घर की
औ टुकडा हूं मै तेरा
फिर क्यूं तेरे आंगन
नही रह पाई बाबू जी, बतलाओ ना बाबू जी
हाँ याद तेरी आती बडी
हर बात नहीं तुमको
बताते हैं बाबू जी,
छुपाते हैं बाबू जी,
पर याद तेरी आती बडी
गोदी में बिठाकर, मुझे
लड्डू भी खिलाया
है कौन तेरे जैसा दुनिया
में बाबू जी, दिखलाओ ना बाबू जी
हाँ याद तेरी आती बडी
हर बात नहीं तुमको
बताते हैं बाबू जी,
छुपाते हैं बाबू जी,
पर याद तेरी आती बडी
ससुराल में भी मन की
कभी कर नही पाई
आखिर कहाँ अधिकार जताऊं
मै बाबू जी, बतलाओ ना बाबू जी
हाँ याद तेरी आती बडी
हर बात नहीं तुमको
बताते हैं बाबू जी,