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रविवार, 21 नवंबर 2010

प्रत्युत्तर्


वो  मालॅ में बम लगाने ही जा रहा था कि घर से फोन आया , उसने फोन उठाया ही था कि भाई का फोन आने लगा, उसने घर का फोन काट कर भाई से बात की । उधर से आवाज आई – ठीक १२ बजकर ५ मिनट पर रिमोट दबा देना । कोई भूल नही होनी चाहिये । जी भाई कोई गलती नही होगी । और गलती करने का तो सवाल भी तो नही उठता था , आखिर इसके लिये उसे पूरे ५० लाख मिल रहे थे । बस आज रात ही  तो उसे यहाँ से बहुत दूर अपने बीवी बच्चे को लेकर जाना था । फिर कोई अच्छा सा काम शुरु करना था । घडी पर ठीक १२ ;०५ हो गया था , उसके रिमोट दबाते ही सैकडों लोग मौत की नींद सो गये । फिर फोन बजा , आवाज आई– बहुत खूब , अब तुम  अपनी जिन्दगी जी लो। पैसे तुम्हारे घर पहुँच जायेंगें ।वह घर आ गया , और टी. वी. खोल कर की हुयी बर्बादी का मंजर देखने लगा । टी. वी. खोलते ही उसे जो पहली तस्वीर दिखी वो उसकी बीवी की थी जिसके हाथ में अभी भी अपने बच्चे के हाथ का टुकडा था । और उसका हर सपना एक ही पल में हमेशा के लिये सिर्फ सपना ही बन कर रह गया ।शायद नियति  ने उसे हर उत्तर दे दिया था ।
औरों का जला आशियां
तो लगा रौशनी हुयी कहीं ,
कम से कम अपने घर का
अंधियारा तो मिट गया  
पल भर में ही आयी
धुंये के साथ ये खबर ,
तेरे ही गुलशन का
हर इक फूल उजड गया ॥

20 टिप्‍पणियां:

  1. नियति को यही मंजूर था हुआ वही जो उसकी सोच से परे था

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  2. बहुत सुन्दर पोस्ट

    उजाड़ने वाले जब उजड़ते हैं तब उजड़ने का दर्द महसूस होता है

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  3. बहुत ही ज्वलंत विषय पर आपने मन को झकझोर देने वाली बात लिखी है ...काश इसे बहके कदम समझ पाते

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  4. ऐसा नहीं होता, होता तो बम न लगाये जाते..

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  5. आतंकवाद फ़ैलाने वाले उसी के हाथो समाप्त हो जाते है.अपनों को खो कर वो मरे हुए से भी बत्तर है
    अच्छी पोस्ट

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  6. लघुकथा अच्छी है।
    प्रत्योत्तर कोई शब्द नहीं होता, प्रत्युत्तर होता है।

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  7. तेरे ही गुलशन का
    हर इक फूल उजड गया ॥
    हर आतंकवादी की कहानी ।

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  8. tere hi gulsahan ka har ek fool ujadh gaya, bahut hi samvednatmak line hai. bahut hi emotional hai ankhon ko nam kar gayi hai ye line.

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  9. बेहतरीन प्रस्तुति ... अपना हाथ जलता है तभी दर्द का एह्साह होता है

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  10. कहानी का भाव बताता है कि जस करनी तस भरनी
    अंत में तबाही ही नियति है वो चाहे माल में आतंकी के बच्चे और पत्नी के रूप में हो या किसी और रूप में
    भारतीय नागरिक को निराश नहीं होना चाहिए

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  11. एक सार्थक और समसामायिक कहानी के लिए आपका आभार और आपको बधाई.

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  12. अगर ऐसा होता है तो किसी दूसरे के चले जाने का दर्द का एहसास होता है परंतु इस प्रकार से भी नुकसान तो इंसानों का ही होता है....दूसरों को नुकसान पहुँचाने वाला व्यक्ति अगर ऐसा सुन कर या सोच कर सुधर जाए तो कितना बढ़िया हो..सार्थक रचना..बधाई

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  13. उजाड़ने वाले जब उजड़ते हैं तब उजड़ने का दर्द महसूस होता है.
    jwalant subject par sarthak post.

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  14. स्वतन्त्रता दिवस की शुभ कामनाएँ।

    कल 17/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  15. आतंकियों के आतंक को दर्शाती सार्थक...सम सामयिक रचना .

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आपकी राय , आपके विचार अनमोल हैं
और लेखन को सुधारने के लिये आवश्यक

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