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गुरुवार, 17 मार्च 2011

बिन आसूं रोया ये मन



आज बहुत उदास है ये मन

बिन आसूं ही रो रहा ये मन


काँच से नाजुक रिश्तों को

कितना मैने संभाला था

दुनिया की बुरी निगाहों से

उसको मैने बचाया था

मगर लगा उसको तो

किसी अपने का ही ग्रहण

आज बहुत……………..


पल भर मे ही लगा कि जैसे

रानी से भिखारिन हो गये

बिन अपराध किये ही तो

हर नजर के अपराधी हो गये

जीते जी ही कर डाला

उसने मेरे भावों का तर्पण

आज बहुत ……….


फिर भी जीवन निर्मम इतना

सासों को नही है त्याग रहा

जाने क्यों अब भी आखों में

उसके ख्वाबों को पाल रहा

बचा ही क्या है जो कर दे

अब उसके चरनों में अर्पण

आज बहुत…………………..



35 टिप्‍पणियां:

  1. भावपूर्ण मार्मिक अभिव्यक्ति....
    गहन अनुभूतियों का सहज प्रवाह ह्रदय तक पहुँच रहा है |

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  2. फिर भी जीवन निर्मम इतना
    सासों को नही है त्याग रहा
    जाने क्यों अब भी आखों में
    उसके ख्वाबों को पाल रहा

    Bhavpoon rachna hai...

    जवाब देंहटाएं
  3. बचा ही क्या है जो कर दे
    अब उसके चरनों में अर्पन.. bhut hi emotional kavita hai.. very nice...

    जवाब देंहटाएं
  4. पल भर मे ही लगा कि जैसे
    रानी से भिखारिन हो गये
    बिन अपराध किये ही तो
    हर नजर के अपराधी हो गये
    जीते जी ही कर डाला
    उसने मेरे भावों का तर्पन
    आज बहुत ……….

    फिर भी जीवन निर्मम इतना
    सासों को नही है त्याग रहा
    जाने क्यों अब भी आखों में
    उसके ख्वाबों को पाल रहा
    बचा ही क्या है जो कर दे
    अब उसके चरनों में अर्पन
    आज बहुत………………

    इस के लिए मेरे पास सिर्फ एक ही शब्द है बहुत ही लाजवाब

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  5. मुझे ये कविता पढने के बाद प्रसाद जी की निम्न पंक्तियाँ याद आयी .

    बस गई एक बस्ती है स्मृतियों की इसी ह्रदय में
    नक्षत्र लोक फैला है , जैसे इन नील निलय में
    जो घनीभूत पीड़ा थी , मस्तक में स्मृति सी छाई
    दुर्दिन में आंसू बनकर वह आज बरसने आयी.

    सुन्दर भावपूर्ण और ह्रदय स्पर्शी कविता .

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  6. आप भावों के भारीपन व गहराई से बाहर आयें।

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  7. अतिभावुक रचना है, उदास कर जाती है रचना।

    शाकाहार जाग्रति में सहायक बनें…

    निरामिष: शाकाहार : दयालु मानसिकता प्रेरक

    जवाब देंहटाएं
  8. काँच से नाजुक रिश्तों को
    कितना मैने संभाला था
    दुनिया की बुरी निगाहों से
    उसको मैने बचाया था
    मगर लगा उसको तो
    किसी अपने का ही ग्रहन


    बहुत ही बेहतरीन... एक भावपूर्ण रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  9. आज बहुत उदास है ये मन
    बिन आसूं ही रो रहा ये मन

    काँच से नाजुक रिश्तों को
    कितना मैने संभाला था
    बहुत भावपूर्ण
    ब्लॉग पर अनियमितता होने के कारण सभी से माफ़ी चाहता हूँ ..

    जवाब देंहटाएं
  10. मगर लगा उसको तो
    किसी अपने का ही ग्रहन
    भावपूर्ण रचना, बहुत-बहुत बधाई!

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  11. अपर्णा जी....
    बहुत खूब...
    लेकिन ये होली के समय ऐसी बातें....
    चलिए पिचकारी लेकर आईये तो जल्दी से....
    होली है....बुरा न मानो होली है...

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत उम्दा और मार्मिक रचना!

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत संवेदनशील और भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  14. कविता में दुखानुभूति की सशक्त अभिव्यक्ति हुई है।

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  15. फिर भी जीवन निर्मम इतना
    सासों को नही है त्याग रहा
    जाने क्यों अब भी आखों में
    उसके ख्वाबों को पाल रहा

    इन पंक्तियों को पढ़कर में सन्न रह गया ...बहुत दुखद अनुभूति का भावपूर्ण वर्णन किया है आपने ...आपका आभार

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत ही बेहतरीन, भावपूर्ण रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई.

    होली मंगलमय हो. आभार.

    जवाब देंहटाएं
  17. भावपूर्ण मार्मिक अभिव्यक्ति....बहुत-बहुत बधाई.****

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  18. "फिर भी जीवन निर्मम इतना
    सासों को नही है त्याग रहा
    जाने क्यों अब भी आखों में
    उसके ख्वाबों को पाल रहा"


    बहुत अच्छा लिखा आपने.

    होली की शुभकामनाएं.

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  19. आपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!

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  20. काँच से नाजुक रिश्तों को

    कितना मैने संभाला था

    दुनिया की बुरी निगाहों से

    उसको मैने बचाया था

    मगर लगा उसको तो

    किसी अपने का ही ग्रहण

    संवेदनशील और भावपूर्ण अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  21. संवेदनशील और भावपूर्ण अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  22. आप को सपरिवार होली की हार्दिक शुभ कामनाएं.

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  23. व्यथित भावनाओं की अत्यंत भावपूर्ण प्रस्तुति........

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  24. घुटते टेंकती भावुकता का, फायदा बहुत उठाया जाता है अपर्णा ....
    शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं

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