क्यों पनप रही है मन में ये कडवाहट ,
क्यों अब भली लगती नही तेरी मुस्कराहट।
कल तक तेरे जिस अंदाज पे मिटते थे हम
क्यों झलकने लगी उसमें थोडी बनावट ॥

ले गये तुम हमे चाहे किसी भी जगह ।
बात कुछ भी हो , मानी थी हमने सदा,
ये ना सोचा कभी क्या है इसकी वजह ॥
अब आने लगी तेरी हर बात में
क्यों दिल को मेरे साजिशों की आहट
क्यों अब भली लगती नही तेरी मुस्कराहट...........
जिन बाँहों में आने को मचलता था दिल ,
वो ही अब हमको सृपीली लगने लगी ।
दिन गुजरने का पता ना चलता था कभी,
अब दो घडी भी बोझिल सी होने लगी ॥
जिस बन्धन में बंधने की मांगी थी दुआ
क्यों हो रही है फिर उड जाने की छटपटाहट
क्यों अब भली लगती नही तेरी मुस्कराहट.......
मिलता उनमें नही कोई मेरा निशां ।
कल तलक लगता था अपना सारा जहाँ,
धुंधली धुंधली सी है, आज हर इक दिशा ॥
डरते ना थे कभी घने अंधेरों से भी हम
क्यों उजालों से भी आज होने लगी घबराहट
क्यों अब भली लगती नही तेरी मुस्कराहट.......