प्रशंसक

शुक्रवार, 17 जून 2016

प्रियतम मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ..............



कुछ फर्ज निभाने है मुझको, कुछ कर्ज चुकाने हैं मुझको
प्रियतम मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ, बस कुछ पल थोडा  धीर धरो

कुछ बन्धन मुझे पुकार रहे, खुलनी हैं कुछ मन की गाँठे
हर साँस में बसते हो तुम्ही, बस कुछ पल थोडी पीर सहो

कुछ साये तिमिर के घेरे हैं, मन में भय के कुछ पहरे है
ये कोरा मन तेरा ही है , बस कुछ पल हाथों मे अबीर धरो

कुछ बातें अभी अधूरी हैं, कुछ सुननी कहनी है जग से
ऐ मेरे दिल के अटल नखत, न खुद को नभ की भीड कहो

कुछ दहलीजे रोक रही मुझको, कुछ राहें रस्ता देख रही
विस्वास धरे पलकें मूंदें, बस कुछ पल तुम मेरे साथ बढो

कुछ खोने से मन डरता है, कुछ पाने को मन आतुर है
दिल में अजब बवंडर है, बस कुछ पल थोडी शीत सहो

प्रियतम मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ, बस कुछ पल थोडा  धीर धरो

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बहुत सुन्दर..... हृदय स्पर्शी.... भावनात्मक कविता...
    बहुत बहुत धन्यवाद आपको..

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19-06-2016) को "स्कूल चलें सब पढ़ें, सब बढ़ें" (चर्चा अंक-2378) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं

आपकी राय , आपके विचार अनमोल हैं
और लेखन को सुधारने के लिये आवश्यक

GreenEarth