नही चाहत मुझे, किसी तारीफ के पुलिन्दे की
हम वो सोना हैं जो, तपती आग में निखरता है
क्या मिटाओगे उसे, जो खुद को मिटा बैठा है
हम वो मिट्टी हैं जो, बीज को फसल करता है
कठिन नही समझना मुझे, कोशिश तो करिये
हम वो पन्ना हैं जो, तेरा ही कहा लिखता है
नही लगता साथ टूटने में, पलभर का समय
हम वो रिश्ता है जो, काँच सा दिल रखता है
हम वो किनारा हैं जो, लहरों पे नजर रखता है
न खोजना मुझे गहरे सागर में, मोती की तरह
हम वो धागा है जो, मोतियों में छुपा रहता है
बहुत आसां है मुझे अपनाकर, अपना कर लेना
हम वो पानी हैं जो, हर रंग को ओढ लेता है
achhi rachna
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत ही सुन्दर !
जवाब देंहटाएंThanks Sadhana ji
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन - जगजीत सिंह जी की 76वीं जयंती में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंसुन्दर।
जवाब देंहटाएंreally good
जवाब देंहटाएंbahut sunder