मन कहता इस नववर्ष
पर, आज कोई नवबात लिखूँ
भूल के सारे द्वेष
सभी से, अपने मन का राग लिखूँ
बीते समय की सात तहों
में, कुछ खट्टे कुछ मीठे पल हैं
जिन लम्हों में रोये
हँसे, चाहे अनचाहे स्मरणीय कल हैं
सोच रही यादों के वन
से, चुनचुन कर उल्लास लिखूँ
भूल के सारे द्वेष
सभी से, अपने मन का राग लिखूँ
बदल रहे है लोग अगर
तो, इसको सहज स्वीकार करो
निज में बिन कटुता
लाये, उन सबका भी आभार करो
भाव जो अलिखित रहे,
उनका शब्दों से सत्कार लिखूँ
भूल के सारे द्वेष
सभी से, अपने मन का राग लिखूँ
आशा और निराशा साथी, दोनो ही गति अपने मन की
धूप छाँव के खेल खेलती, चंचल बदली हमसे जीवन की
मन की पीडा को कलम
बना, औरो की मुस्कान लिखूँ
भूल के सारे द्वेष
सभी से, अपने मन का राग लिखूँ
मन कहता इस नववर्ष
पर आज कोई नवगीत लिखूँ
भूल के सारे द्वेष
सभी से, अपने मन का राग लिखूँ
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (01-01-2017) को "नूतन वर्ष का अभिनन्दन" (चर्चा अंक-2574) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
नववर्ष 2017 की हार्दिक शुभकामनाओंं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
..बहुत सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंआपको भी नए साल की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं
..बहुत सुन्दर नवगीत ..
जवाब देंहटाएंआपको भी नए साल की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं
bhut khoob...
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