ना हार चाहिये ना गुलाब चाहिये
स्त्री हूँ थोडा सा प्यार
चाहिये
जाने कब से तडप रही हूँ
बिन पानी के मछली सी
अपने ही घर में सदा रही
अमानत किसी पराये की
ना घर चाहिये ना दुआर चाहिये
स्त्री हूँ थोडा सा दुलार
चाहिये
ना हार चाहिये ना गुलाब चाहिये
स्त्री हूँ थोडा सा प्यार चाहिये
तज कर के सर्वस्व तुम्हारे
आंगन मे मै आयी हूँ
देव मान के तुमको अपने
हदय स्थल में बिठाये हूँ
ना धन चाहिये ना वरदान चाहिये
स्त्री हूँ थोडा सा सम्मान
चाहिये
ना हार चाहिये ना गुलाब चाहिये
स्त्री हूँ थोडा सा
प्यार चाहिये
कोख में अपना रक्त पिला
हाड मास आकार दिया
भूल गयी अपना तन मन
और उडने को तुम्हे आकाश दिया
ना सेवा चाहिये ना सत्कार
चाहिये
स्त्री हूँ रिश्तो का संसार
चाहिये
ना हार चाहिये ना गुलाब चाहिये
स्त्री हूँ थोडा सा
प्यार चाहिये
दुनिया की चमक धमक मे भी
मै सिमटी सुकडी रहती हूँ
डरती नही मुश्किलों से पर
गिद्धों से भागी फिरती हूँ
ना आरक्षण चाहिये ना त्योहार*
चाहिये
स्त्री हूँ सिर्फ शुद्ध
व्यव्हार चाहिये
ना हार चाहिये ना गुलाब चाहिये
स्त्री हूँ थोडा सा
प्यार चाहिये
*महिला दिवस को लेखिका यहाँ
त्योहार कहती है
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (09-03-2017) को "अगर न होंगी नारियाँ, नहीं चलेगा वंश" (चर्चा अंक-2904) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब लिखा आपने अपर्णा दी हर पंक्ति
जवाब देंहटाएंअपने आप मैं सम्पूर्ण
अब समय आ गया है हक़ लेने का ! याचना का नहीं !!
जवाब देंहटाएंशर्मा जी, आपके विचारों का सम्मान करना चाहती हूँ किन्तु पूछना चाहती हूँ आपको किन पंक्तियों में याचना का आभास हुआ।
जवाब देंहटाएंऔर अपनों के सामने यदि झुका भी जाय तो वह याचना नही, जरूरी तो नही कि अधिकारों के लिये हमेशा युद्ध ही किया जाय
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १२ मार्च २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' १२ मार्च २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीया साधना वैद और आदरणीया डा. शुभा आर. फड़के जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।
अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
निमंत्रण
जवाब देंहटाएंविशेष : 'सोमवार' १९ मार्च २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीया 'पुष्पा' मेहरा और आदरणीया 'विभारानी' श्रीवास्तव जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।
अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
अद्भुत अपर्णा जी अद्भुत लेखन शब्द न रह गए हैं शब्द कोष में सब कुछ धर दिया है ज्यों का त्यों जो हर स्त्री आभाष करती है,हर स्त्री की जो मनशा है लेखनी में मानो मोहपाश भरकर लिखा हो मैं तो दीवानी से हो गयी आपके लेखन के इस एक काव्य पर मेरी सारी शुभकामनाएं आदर आपको
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