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बुधवार, 20 जून 2018

करती हूँ आह्वाहन मै



करती हूँ आह्वाहन मै, बस पढे लिखे समझदारों से
देखो जरा निकलकर दुनिया, फेसबुक की दीवारों से

बूढ़ी माँ लाचार पिता, हर पल राह तुम्हारी तकते हैं
धन दौलत की चमक नही, तेरे चेहरे को तरसते है
थोडा उनके साथ रहो, निकल दिखावे के बाजारों से
करती हूँ आह्वाहन मै, बस पढे लिखे समझदारों से

कीमत नही चुका पाओगे, धरती मां के आंचल का
बस बातों से हरा न होगा, बंजर सीना जंगल का
पैसा छोड कुछ पुण्य कमाओ, पेडं लगा वीरानों में
करती हूँ आह्वाहन मै, बस पढे लिखे समझदारों से

काम बहुत है करने को, जो वाकई उन्नत देश करे
राजनीति की उठा पटक में, अपनो से तू क्लेश करे
वक्त अभी है दूर हो जाओ, मक्कारों और गद्दारों से
करती हूँ आह्वाहन मै, बस पढे लिखे समझदारों से

सोचो क्या थे पूर्वज अपने, और कहाँ हम पहुंचे हैं
कुंये बाग लगाते थे वो, हम बिसलेरी पानी पीते हैं
कितनी नस्लें और जियेंगीं, तापमान कें अंगारों में
करती हूँ आह्वाहन मै, बस पढे लिखे समझदारों से

देखो जरा निकलकर दुनिया, फेसबुक की दीवारों से
करती हूँ आह्वाहन मै, बस पढे लिखे समझदारों से

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (22-06-2018) को "सारे नम्बरदार" (चर्चा अंक-3009) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ जून २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. देखो जरा निकलकर दुनिया, फेसबुक की दीवारों से
    करती हूँ आह्वाहन मै, बस पढे लिखे समझदारों से
    सच समय रहते यदि आभासी दुनिया से बाहर न निकले तो फिर एक दिन खाना-पीना भी नहीं मिलेगा और हवा-पानी का लाले पड़ जाएंगे
    बहुत सही

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  4. वाह !
    आक्रोश और आवाहन बहुत अच्छा !

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  5. वाह!!बहुत खूबसूरत...। एक दम सही कहा आपनें ।

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  6. सार्थक सटीक आह्वान
    बहुत बढिया।

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  7. क्या बात है |बड़े ही मार्मिकअंदाज में कवी मन छलका है | काश ये फेस बुक यूजर सुन ही लेते हृदयस्पर्शी उद्बोधन !!!!
    बूढ़ी माँ लाचार पिता, हर पल राह तुम्हारी तकते हैं
    धन दौलत की चमक नही, तेरे चेहरे को तरसते है
    थोडा उनके साथ रहो, निकल दिखावे के बाजारों से
    करती हूँ आह्वाहन मै, बस पढे लिखे समझदारों से
    वाह !!!!! प्रिय अपर्णा जी -- सस्नेह -

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुन्दर सार्थक जवं सटीक प्रस्तुति...
    सोचो क्या थे पूर्वज अपने, और कहाँ हम पहुंचे हैं
    कुंये बाग लगाते थे वो, हम बिसलेरी पानी पीते हैं
    कितनी नस्लें और जियेंगीं, तापमान कें अंगारों में
    करती हूँ आह्वाहन मै, बस पढे लिखे समझदारों से
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं

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