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गुरुवार, 27 जून 2019

गिद्ध



कभी सोचा नही था, जीवन मेरे लिये इस कदर दुष्कर हो जायगा। मेरे जैसे आत्मसंतुष्ट व्यक्ति के जीवन की परिणित आत्महत्या तक पहुँच जायगी। सामान्यतयः लोग अपने सुसाइड नोट में लोग स्वयं को अपनी मॄत्यु का उत्तरदायी बताते हैं, ताकि उनके बाद उसके किसी अपने को आरोपित न किया जाय। मेरे लिये इस नोट को लिखने की ऐसी कोई आवश्यकता इसलिये नही कि  रिश्तों की गिनती मेरे लिये शून्य से शुरु और शून्य पर ही समाप्त हो जाती थी, तदापि लिखना अनिवार्य है। मृत्यु को कंठ लगाने से मैं चाहता हूँ कि आपको वहाँ ले चलूं जहाँ स्वयं मैने अपनी मॄत्यु का बीज बोया था।
करीब बीस वर्ष पूर्व, जब मैं अपने जीवन में कुछ बनने के संघर्ष से जूझ रहा था, मेरे पास पिता की पैतॄक सम्पत्ति तो क्या, पिता का नाम तक नही था। पूंजी के रूप में सिर्फ मेरे पास थी मेरी माँ, जिसने तमाम कठिनाइयों के बीच मुझे इतना बडा कर लिया था, जहाँ से मै जिन्दगी का सामना कर सकता था। फोटोग्राफी का हुनर मुझे मेरे पिता की विरासत के रूप में मिला था। और इसे ही मैने अपनी जीविका का साधन बनाने का निश्चय किया था। खुशियों की तस्वीरों को खींचने से ज्यादा मुझे दर्द और तकलीफों की तस्वीरे खींचने में आनन्द आता था, शायद ऐसा इसलिये भी हुआ कि दुनिया के बाजार में चीख, आँसू या दर्द की तस्वीरों की ज्यादा कीमत मिलती है।
मैं अक्सर ऐसे ही लोगों की खोज में रहता। गरीबी, भुखमरी, लाचारी देख मैं प्रसन्न होता, कि मेरे कैमरे को एक और खूब बिकने वाली चीज मिली और मुझे पेट भरने के लिये रोटी। धीरे धीरे मेरा नाम और काम दोनो बडने लगे। आज मेरी स्वयं की एक पहचान थी, मेरी मेहनत ने मेरा भाग्य बदल दिया था मगर मेरी तस्वीरों का विषय नही बदला था। शायद लोगों के बीच मेरी पहचान एक ऐसे फोटोग्राफर की बन गयी थी, जो समाज को दर्द और लाचारी की तस्वीर दिखाता था। 
करीब तीन महीने, मेरे मन में प्रसिद्धि की ऐसी भूख जागी कि मै दिन रात ऐसे मंजर की तलाश करने लगा, जो मुझे व मेरे मन को शान्त कर सकता। और फिर एक दिन अपने काम की खोज करते करते मै अफ्रीका के वीरान जंगलों में पहुँच गया। वहाँ मेरे सामने था, एक वीरान सूखा जंगल, एक गिद्ध और एक सात आठ महीने का भूख से बिलखता लगभग मरणासन्न बालक। गिद्ध की आँखें टकटकी लगाये उस बच्चे की मॄत्यु की प्रतीक्षा कर रही थी। ये एक ऐसा दॄश्य था कि इन्सान तो क्या दानव के भी हदय को भी पिघला देता। मुझे लगा ये एक विलक्षण दृश्य है, मैने बिना समय गंवाये यह चित्र अपने कैमरे में कैद किया। अगले ही पल मेरे मन में उसको जल्द से जल्द कागज पर उतार कर लोगों के सामने लाने और उनकी प्रशंसा सुनने की ऐसी प्रबल इच्छा हुयी कि मै विघुत गति से लौटा। और जैसी मैने अपेक्षा की थी, वह चित्र मेरे जीवन का सबसे प्रसिद्ध चित्र सिद्ध हुआ। इस चित्र के लिये मुझे फोटोग्रेफी की दुनिया का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार दिया गया। मेरी सफलता पर एक प्रेस कांफ्रेंस हुयी। उस सभा में एक रिपोर्टर ने मुझसे ऐसा सवाल किया जिसने उस  क्षण के बाद से अभी तक हर क्षण मुझे जीवन यात्रा को समाप्त करने का ही आदेश दिया। उसने मुझसे कहा- जिस चित्र को देख कर हर किसी का हदय दुखी हो जाता है, उस जगह से आप वापस कैसे आ सके, क्यूं आपको उस बच्चे को बचाने का विचार नही आया, फिर थोडा रुक कर बोला- सर, आपके चित्र में भले ही हर किसी को एक गिद्ध दिख रहा हो, मुझे तो दो दीखते है।
वह एक संघर्षरत रिपोर्टर था और मै दुनिया की नजरों में एक महान फोटोग्राफर। लोगों ने उसे कडी नजरों से देखा शायद वो कुछ और भी कहता मगर वो चुप  हो गया। वह तो चुप हो गया, मगर मेरा अन्तर्मन उस पल से अभी तक के पल में मुझे धिक्कारता रहा। हर पल मैं अपनी नजरों से स्वयं को गिद्ध ही देखता रहा हूँ, दिन प्रतिदिन अपराधबोध से ग्रसित होता जा रहा हूँ, और अब मुझमें स्वयं को देखने की शक्ति नही। जिस पुरस्कार को पाकर एक दिन मैने जीवन की सबसे बडी खुशी का अनुभव किया था, आज वह मुझे काल के समान दिखता है। आज सोच पा रहा हूँ कैसे ऐसे संदेवनहीन चित्र को पुरस्कृत किया जा सकता है। मेरे जिस कर्म के लिये मुझे धिक्कारा जाना चाहिये था, उसके लिये कैसे कोई पुरस्कृत कर सकता है। आह! क्या हमारा समाज अनगिनत अदृश्य गिद्धों से भरा हुआ है। मगर मैं किसी को कुछ कहने का अधिकारी नही। 
बस जाने से पहले इस दुनिया से कहना चाहता हूँ जीवन के मार्ग पर चलते हुये हर पल यह अवश्य देखिये- कही आप भी गिद्ध तो नही बन रहे। मेरी मॄत्यु तो उसी क्षण हो गयी थी जब उस भूख से विलखते बच्चे को एक गिद्ध की भूख मिटाने को सौंप आया था, आज तो मै केवल उस शरीर का त्याग करने जा रहा हूँ जिसने विलासिता अर्जित करने के मार्ग में मानवता के प्राणों की आहुति दे दी। आज मुझे इस मानव शरीर से घृणा हो रही है, आत्मग्लानि की अग्नि में मेरी आत्मा जल रही है और मेरे लिये प्रायश्चित के जल से उस अग्नि को शान्त कर पाना भी असम्भव हो चला है।
* केविन कार्टर के जीवन पर आधारित

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (28-06-2019) को "बाँट रहे ताबीज" (चर्चा अंक- 3380) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. जब तक एक भी व्यक्ति भूख से मरता है, सारी मानवता ही दोषी है

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