शाम को मैं लगभग रोज ही घर के पास की ही एक पार्क
में घूमने जाती हूँ, वहाँ पर शाम को कई बुजुर्ग भी आते हैं। कल शाम को यूँ ही टहलने
के बाद मै एक बेंच पर बैठ गयी। बगल की बेंच में एक बुजुर्ग दम्पति बैठा हुआ था। उन्हे
मै करीब एक हफ्ते से यहाँ देख रही थी। देखने से लगता था कि कही बाहर के रहने वाले है,
यहाँ वो शायद अपने किसी रिश्तेदार या बेटा/ बेटी से मिलने या साथ रहने आये थे। उनकी
जो बातें मेरे कानों से टकराई, उसने मुझे ये सोचने के लिये विवश कर दिया कि क्या आज
का युवा दिशा भ्रमित, पथ भ्रष्ट हो चुका है? मेरी बगल की बेंच पर बैठी बुजुर्ग महिला
अपने पति से कह रही थी- आप बस अब मुझे यहाँ से ले चलिये, अब मुझे ना बेटा चाहिये, ना
बहू , ना पोता। मुझे नही कराना अपनी बीमारी का इलाज, यहाँ तो दिन रात मैं और बीमार
होती जा रही हूँ, ऐसा लगता है कि किसी अजनबी के पास आ गयी हूँ। अरु अब अरु नही, अनिरुद्ध
बन गया है। आज उसे माँ के इलाज पर पैसे खर्च करना एक बोझ लग रहा है, आप जानते है कल
जब मै डाक्टर के पास अरू के साथ गयी थी, तब डाक्टर ने जब दवाइयां लिखी तो अरू पहले
मेडिकल स्टोर गया फिर बिना दवा लिये फिर से डाक्टर के पास गया, और मुझसे बोला- माँ
डाक्टर से जरा दवाये समझ कर आता हूँ मगर अरू डाक्टर के पास दवाइयां समझने नही, महंगी
दवाइयों के बदले सस्ती दवाइयां लिखवाने गया था। वो शायद ये नही जान पाया कि जिस माँ
ने उसे बोलना सिखाया है, वो उसके सच झूठ को भी परख सकती है। मैने जिस अरू को पाला
पोसा वो यह नही है। इस दुनिया में जब पराए अपने बन सकते हैं तो अपने पराये क्यों नही
बन सकते? आप आज ही मुझे यहाँ से ले चलिये, जीवन के जितने भी दिन बचे है उन्हे मै सुकून
से जीना चाहती हूँ।
मुझे समझ नही आ रहा था कि अनिरुद्ध मल्होत्रा,
जिन्हे सोसाइटी मे हम सभी बहुत सम्मान देते है, जिनके पास आज दो - दो फ्लैट्स है, जो
शहर के नामी वकीलों में गिने जाते है, उनका एक ये भी रूप है।
काश वो और समाज के सारे ऐसी सोच वाले लोग ये
समझ पाते कि माता-पिता , हमारे बुजुर्ग हमसे बस थोडे से प्यार, सम्मान और देखभाल की
उम्मीद करते हैं, और ये हमारा सौभाग्य ही है कि हमे उनकी थोडी सी भी सेवा का, या साथ
रहने का मौका मिले।
हम बडे होने पर क्यो ये सोचते है कि बडे हमारे
साथ रहते है, बडे कभी हमारे साथ नही रहते, हमेशा हम छोटों को उनके साथ की जरूरत होती
है, हम उनके साथ रहते हैं।
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (07-02-2020) को "गमों के बोझ का साया बहुत घनेरा "(चर्चा अंक - 3604) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है ….
अनीता लागुरी 'अनु '
मैं आपकी पोस्ट से पूर्ण रूप से सहमत हूं बड़े बुजुर्गों के साथ बिताया हुआ समय हमारे कल को बहुत अच्छा बनाएगा आपका यह संदेश समाज हित में बहुत ही प्यारा है सुगना फाउंडेशन परिवार
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