मां तुम अक्सर याद आती हो
कह नहीं पाती हरदम
पर याद बहुत आती हो
मां तुम अक्सर याद आती हो
सुबह सबेरे याद आता है
वो सिरहाने तेरे आना
और कहना उठना है या
कुछ देर और है सो जाना
वो गरम चाय की प्याली लिए
तुम हर सुबह याद आती हो
मां तुम अक्सर याद आती हो
गाजर मूली कसते कसते
उंगली जब काट लेती हूँ
भूल दर्द को, खुद पट्टी कर
कामों में फिर लग लेती हूँ
तुरंत काम को छुडवाती
आंसू बहाती याद आती हो
मां तुम अक्सर याद आती हो
सब सुविधा सब खुशी मगर
खुद को खोया पाती हूँ
रसोई की मालकिन मगर
अपनी पसंद भूलती जाती हूँ
मेरी पसंद मेरी नापसंद का
ख्याल रखती याद आती हो
मां तुम अक्सर याद आती हो
चाहे जितना अब काम करुं
सब कुछ फर्ज मे शामिल है
है एक सुखी संसार जहाँ
स्वच्छंद हसीं ना हासिल है
काबलियत पर ढेरों बलैया लेती
मेरे हंसने पर हंसती याद आती हो
मां तुम अक्सर याद आती हो
आज समझ आता है कितना
मेरे अंतर उर में तुम रहती हो
टूटती बिखरती हूँ जब भी
तुम मुझको सम्बल देती हो
निराशाओं के घने जाल में
आशा की किरण बन जाती हो
आशा की किरण बन जाती हो
मां तुम अक्सर याद आती हो
माँ और मायका हमारे मन और जीवन का सहारा है ।
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी रचना।
जवाब देंहटाएंपग पग पर मां ही याद आती है।
वाह।
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है- लोकतंत्र
Sadar pranam
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