जाडा इस बार अपने पूरे जोर पर था। पिछले तीन दिन से बारिश थी कि
थमने का नाम ही न लेती थी। मगर गरीब के लिये क्या सर्दी क्या गरमी। काम न करे तो खाये
क्या? बारिश में भीगने के कारण सर्दी बुधिया की हड्डियों तक जा घुसी थी। खांसती खखारती
चूल्हे में रोटियां सेक रही थी, और कांपते शरीर को थोडी गरमी भी मिलती जा रही थी। वही
पास में ही एक पुरानी सी बोरी में उसके कलेजे का टुकडा, करीब पाँच साल का कल्लू टूटे फूटे डिब्बों से खेल
रहा था। कल्लू अचानक से बोरी पर से उठ कर माँ के पास आकर लिपट गया।
बुधिया- क्या हुआ रे,
जा खेल न जाके। तभी बुधिया की नजर कल्लू की आंखों में ठहर गई, माँ जान गई कि उसका बेटा
कुछ ऐसा कहना चाह रहा है जो उसके लिये बहुत बडी बात है। लाड करते हुये बोली- क्या हुआ
रे कल्लू, का कहना है बता।
कल्लू- (छोटा सा बच्चा जो कितनी देर से ये सोच रहा था कि अम्मा जाने
मेरी बात को समझेगी कि नही, कल से आज तक में जाने कितनी बार वह सोच चुका था कि अम्मा
से अपना सवाल पूंछ ले, पर हर बार सोचता अम्मा फिर कह देगीं क्या रे कलुआ, तू क्या फालतू
बातें सोचता रहता है, इसी से उसको अपनी बात कहते झेंप हो रही थी, मगर पूंछना जरूरी
भी तो था।) बडी गहन मुद्रा बनाते हुये बोला ताकि उसकी माँ उसकी बात को बहुत ध्यान से
ले बोला- अम्मा पता है, कल न वो ऊंचे वाले बंगले में, अरे जिनके यहाँ सुबेरे आप सबसे
पहले आप जाती हो, वो मेमसाहब न कल अपने लडके से कह रही थी कि किसी की जूठी चीज नही
खाते, फिर थोडा रुक कर कुछ दुविधा जैसी मुद्रा में बोला - मगर अम्मा आप तो हमको रोज
जूठा खिलाती हो।
बेचारी बुधिया को समझ नही आ रहा था कि वो कल्लू से क्या कहे, कैसे
उसको समझाये। चूल्हे पर सेक रही रोटी को चूल्हे से निकाल कर, कल्लू को गोद में बिठाल
ली, बालो में हाथ फिराते हुये अपनी पूरी ममता उडेलते हुये बोली- तुने कैसे समझा रे
कि मै तुमको जूठा खिलाती हूँ, देख ये रोटी तेरे लिये गरमागरम बना रही हूँ न। कहाँ है ये रोटी जूठी।
कल्लू माँ की गोद से उतर कर थोडा सा तुनक कर बोला- आप झूठ बोलती
हो। हमको पता है – वो मेमसाहब आपको जूठी दाल सब्जी देती है, वही तुम हमको खिलाती हो। अबसे
मै भी नही खाऊंगा किसी का जूठा।
बेचारी बुधिया कैसे समझाती अपने लाल को कि किस तरह से वो दो रोटी
का गुजारा कर पाती है, कहाँ से जुटाये वो अपने बेटे के लिये महंगी सब्जियां। क्या हुआ
जो मेमसाहब लोगो का बचा खुचा ले आती है, और फिर मांगती तो नही, जब देतीं है तो रख लेती
है। कम से कम अपने बच्चे को अच्छा खिला तो पाती है, मगर वो यह भी जानती थी कि अभी कल्लू
की वो उमर नही जो इन बातों को समझ सके।थोडा धैर्य रखते हुये बोली- अच्छा रे तो तू इत्ता बडा हो गया कि
माँ को झूठा बता सके, कल्लू को लगा जैसे उसने माँ से बहुत गलत बात कह दी, बेचारा रुआसा
हो गया। उसकी बाल बुद्धि मे कुछ समझ न आया बस माँ की छाती से चिपक कर लाड करते हुये अपनी गलती को मिटाने
लगा।
बुधिया ने भी उसको कस कर चिपका लिया, फिर माथा चूमते हुये बोली-
बेटा जानता है जब भगवान ने दुनिया बनाई तो उसमें दो लोग बनाये, एक का नाम रखा अमीर
और दूसरे का गरीब। जो गरीब लोग थे वो जूठा सच्चा नही देखते थे, वो सब खा लेते थे जैसे तू खा लेता है, और जो अमीर थे वो किसी का जूठा
नही खाते थे, जैसे वो मेमसाहब का बेटा। फिर थोडा रुककर बोली- अच्छा कल्लू तुझे याद है मैने तुमको भगवान राम की बेर वाली कहानी सुनाई
थी, जिसमे भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाये थे।
कल्लू चहक उठा- हाँ अम्मा हमको पूरी कहानी याद है। अम्मा मै भी बिल्कुल
राम जैसा बनूंगा। मै सबका जूठा खा लूंगा, फिर उसके मन में एक और समझ ने जन्म ले लिया, कोतुहलबस बोला- तो अम्मा,
इसका मतलब राम जी गरीब लोग थे न, बुधिया के मन की पीडा का कोई पार न था उसने कल्लू को तो समझा दिया था पर अपने आसुंओं को नही समझा पा रही थी, उसके पास कहने को कुछ न था बस इतना बोली, हां बेटा राम जी तो सबके हैं, तेरे भी हैं मेरे भी हैं।
कल्लू के मन की जिज्ञासायें शान्त हो चुकी थी इसलिये उसने सिर्फ हाँ ही सुना, अब उसको
लग रहा था जैसे उसने सच में बहुत छोटी से बात ही तो पूँछी थी, बेकार ही वो कल से आज
तक इत्ता परेशान रहा। अब वो निश्चिन्त होकर अपने टूटे फूटे डिब्बे जो उसके लिये किसी
कीमती खिलौनों से कम न थे की तरफ खेलने चल दिया।
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ जनवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (17-01-2020) को " सूर्य भी शीत उगलता है"(चर्चा अंक - 3583) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता 'अनु '
मर्मस्पर्शी सृजन
जवाब देंहटाएंबालमन की संवेदना.. निशब्द।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी कहानी।
जवाब देंहटाएंहृदय स्पर्शी कथा , यथार्थ और दर्द।
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी कहानी...बहुत कुछ सीखने को मिलता है आपसे
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रभावशाली
जवाब देंहटाएं