बहुत करीब
फिर भी करती हूँ
जतन हर पहर
तुम्हें और करीब लाने का
तुम्हें महसूस करने लगी हूँ
हथेलियों में
मगर फिर भी
ढूंढती हूँ
लकीरें
जिनमें बाकी है अभी भी
पडना तुम्हारी छाप
हर आती जाती सांस को
टटोल लेती हूँ
कि कही कोई सांस
अनछुई तो नही
तेरी खुशबू से
चाहती हूँ आना तेरे करीब
ठीक वैसे ही
जैसे करीब होती है
लिखावट पन्नों के
मिटाने से भी
मिटती नहीं
जिसकी छाप
चिरकाल तक
बन जाना चाहती हूँ
तेरी धरती
कि हर कदम
रह सकूँ
तेरे साथ
तेरे करीब
Karibbi ka sundar vernan
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर अनुभूति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन बेहतरीन भाव लिए सुंदर रचना।
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