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बुधवार, 19 अगस्त 2020

क्या देखें

 

समझ नहीं आता हम किधर देखें|

तड़पता जिगर या तेरी नज़र देखें||

मिलन रुखसती तो दस्तूर जग का|

मुड़ मुड़ कर क्यों सूनी डगर देखें||

धूप छांव दोनों ही हैं मुदर्रिस मेरे|

कैसे  फिर हम डूबी सहर देखें||

खो जायें मदहोश जुल्फ़ों के तले|

या कयामत सा हंसीन कहर देखें||

मिले अक्सर ही लोग जरुरतों से|

हमने ओहदों के बड़े असर देखें||

कैसा वादा कर गया बूढ़ी आंखों |से

वापसी तेरी हर घड़ी हर पहर देखें||

पराई मिट्टी में जड़े नहीं जमा करतीं|

लौट कर इक बार अपने शहर देखें||

खिल जाते हैं मोहब्बत से  टूटे रिश्ते|

छोड़के जरा जुबां से अब जहर देखें||

मुनासिब नहीं ढूंढूना खामी औरों में|

करके थोडी लोगों की कदर देखें||

न मिल सके जब सुकूं दौड भाग से|

कहती पलाश तब, जरा ठहर देखें||

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