जाने क्यूं जलते लोग,बुलंदियों के आ जाने पर
बदल जाते क्यूं रिश्तें, गुरबत के आ जाने पर
हटे नकाब अनदिखे, उजले चमके चेहरों से
खुल गई सभी बनावटें, तूफां के आ जाने पर
अरसा हुआ देखे उन्हें, जो रोज मिलने आते थे
दिखे नहीं दिया भी तो, अंधेरों के छा जाने पर
घर से आंगन खत्म हुये, बैठकें खत्म दुआरों से
मिलना-जुलना खत्म हुआ,मोबाइल के आने पर
इतराते हैं वो तो इसमें, नहीं ख़ता ज़रा उनकी
नजाकत आ ही जाती है, हुश्न के आ जाने पर
दौर वो खोया जब मेहमां, हफ्तों हफ्तों रहते थे
दिन गिनते हैं अपने ही, अपनों के आ जाने पर
सोने चांदी गहनों की, चाहत मां कब रखती है
खिल जाती है बच्चों सी, बच्चों के आ जाने पर
अभी तलक वो मेरा है, क्यूं कि वो मेरे जैसा है
जाने पलाश क्या होगा शोहरत के आ जाने पर