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शुक्रवार, 11 मार्च 2022

गिर जाना होता हार नही

 


निशा घनी जितनी होगी

भोर धनी उतनी होगी

काले बादल छाये तो क्या

बारिश भी रिमझिम होगी

 

गिर जाना होता हार नही

क्यूं नियति स्वीकार नहीं

है प्रयास तुम्हारे हाथों में

क्यों भुज का विश्वास नहीं

 

ह्र्दय का मत यूं संताप बढा

बन जरा सत्य में लिखा पढा 

अब झांक जरा अंतर्मन मे

औरों के माथ ना दोष चढा

 

हर मार्ग बंद जब होता है

साहस भी साहस  खोता है

वह पल होता है परीक्षा का

तब कर्म ही कारक होता है

 

तो चल समेट ले बल अनंत

सोये सामर्थ्य को जगा तुरंत

है धरा तेरी, यह नभ भी तेरा

कर स्वयं अपने विषाद अंत

 

 

16 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 13 मार्च 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. उत्तर
    1. रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार

      हटाएं
  3. उत्तर
    1. रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार

      हटाएं
  4. वाह! सुंदर बोध जगातीं पंक्तियाँ

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार

      हटाएं
  5. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 15 मार्च 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  6. रचना की सराहना एवं पांच लिंकों का आनंद में स्थान देने के लिये आपका हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  7. उत्तर
    1. रचना की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार

      हटाएं
  8. बहुत सुंदर रचना है। प्रेणादायक और प्रगतिकारक...
    तो चल समेट ले बल अनंत
    सोये सामर्थ्य को जगा तुरंत
    है धरा तेरी, यह नभ भी तेरा
    कर स्वयं अपने विषाद अंत
    --ब्रजेंद्रनाथ

    जवाब देंहटाएं
  9. आपका आशीर्वाद मेरे लिये अमूल्य है।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुन्दर ..कितना कुछ कह दिया ... शब्दों में..

    जवाब देंहटाएं

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