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सोमवार, 23 जुलाई 2012

अनसुलझे उत्तर



तुम भी कमाल करती हो सुधा, एक हफ्ते से तुम अस्पताल मे हो और मुझको बताना जरूरी भी नही समझा , वो तो आज जब छुट्टियों के बाद मैं कालेज गया तब शिशिर ने मुझे बताया कि तुम बीमार हो । मुझसे अगर कोई गलती हुयी तो बता देती, आखिर किस बात की तुमने मुझे ये सजा दी  कहते कहते महिम का गला रूँध सा गया, आँखे छलक सी गयी । महिम तुमने कोई गलती नही की, प्लीज ऐसा क्यो सोचते हो , और फिर अगर मै अगर खुद को सभांल पाने की स्थिति में ना होती तो तुमको बुलाती ही,आखिर तुम्हारे सिवा और किसे बुलाती । तो तुमको लगता है कि इतने दिनों से तुम यूँ ही यहाँ एड्मिट हो , और मै बेकार ही तुम्हारी फिक्र कर रहा हूँ , और कहते कहते महिम कुछ नाराज सा हो गया, तो धीरे से सुधा ने महिम का हाथ थामते हुये कहा- महिम सच कहना क्या आधी रात अगर मै तुमसे कहती कि मै बीमार हूँ तो क्या वाकई तुम अपनी पत्नी को छोड कर मेरे पास आ पाते........... कहते  कहते उसने आँखे बन्द कर ली  मगर उसके हाथ की पकड इतनी मजबूत हो गयी थी जैसे कोई बच्ची अपनी नयी गुडिया को समेट कर सो जाती है , और महिम बस अपनी गुडिया को अपलक देखता रहा, क्योकि कहने के लिये शायद उसके पास भी कुछ नही था, और शायद सुधा को भी किसी उत्तर का इन्त्जार नही था, या शायद कुछ प्रश्नो के जवाब हो कर भी नही होते.............

मंगलवार, 10 जुलाई 2012

जब से...............



हर चीज  खूबसूरत नजर आने लगी, जब से वो बसने लगे  मेरी निगाहों में,
मोहब्बत की रूह से रू-ब-रू हुये तब, जब कही हर बात उन्होने इशारों में।

देखा सुना पढा लिखा भी
यूं तो बहुत इश्क के बारे में....
मगर दिखा ना था अब तक
जो दिखता है अब हर नजारे में
हर बात भली सी लगने लगी जबसे, बसने लगे वो, मौसम के नजारों में,
मोहब्बत की रूह से रू-ब-रू हुये तब, जब कही हर बात उन्होने इशारों में।

महसूस हुआ है अब हमको
कितने तन्हा थे हम, खुद में
क्यो हुये ना थे खुश अब तक
जबकि खडे थे खुशियों के ढेरों में
क्या होता है साथ ये जाना, जब दो कदम साथ चले, सागर के किनारों में,
मोहब्बत की रूह से रू-ब-रू हुये तब, जब कही हर बात उन्होने इशारों में।

ना जाने कहाँ कैसे और कब
खो गया हर डर मेरे मन से
कुछ संवर गये, कुछ निखर गये
कहते है अब तो ये सब हमसे
दुनिया को सिमटते देखा , जब पाया खुद को, उनकी बाहों के सहारों में,
मोहब्बत की रूह से रू-ब-रू हुये तब, जब कही हर बात उन्होने इशारों में।

मंगलवार, 5 जून 2012

क्या लिखूँ -- दर्द या खुशी


चाहती हूँ हमेशा लिखना
वो जो औरों को खुशी दे
उन्हे कुछ पल अपने
हंसी अतीत में खोने दे

मेरे हर शब्द उन्हे लगे
बात अपने ही मन की
पढते पढते सोचने लगे
कहानी अपने ही मन की

मगर सदा सम्भव नही
होता औरों को हँसाना
अपने शब्दों के दर्पण में
किसी की तस्वीर बिठाना

भरा हो मन ही जब
पीर के पानी से
कैसे श्रंगार गाऊँ
कवित्व की बानी से

मगर नही छुपाना ही होगा
दर्द को किसी अलंकार मे
उलझाना ही होगा अश्कों को
शब्दों के भ्रमर जाल में

जैसे आँसू खुशी और गम
दोनो में ही आते है
देखने वाले मगर उसकी
अपनी अपनी परिभाषा बनाते हैं

वैसे ही लिखूँगीं कलम से
कुछ इस तरह के गीत
खुशहाल हो या जख्मी दिल
मिले उसे अपना ही अतीत

बुधवार, 30 मई 2012

तेरे आने के बाद


तेरे आने से पहले मेरी नींदें
ख्वाबों से बेजार तो ना थी
प्यार के अहसास से दिल
मरहूम रहा हो ऐसा भी ना था
मगर फिर भी तेरे आने से
लगता है सब बदल सा गया
अब ही से तो हमने किया है
शुरू अपनी जिन्दगी को जीना
सुबह तब भी निकलता था
सूरज पूरब से ही और
शाम को चाँद भी आकर
बिखेरता था चाँदनी अपनी
मगर फिर भी तेरे आने से
लगता है सुबह लाती है प्यार
चाँद की चाँदनी मे घुली
होती है सनम मोहब्बत तेरी
फूल पहले भी खिलते थे
भीनी भीनी सी खुशबू लिये
सावन भी आया करता था
हल्की हल्की सी फुहारें लिये
मगर कुछ तो है ऐसा जो
पहले महसूस ना हुआ कभी
जाना है तेरे आने से
किस बात की थी हमको कमी
नजर वही है, नजारे भी है वही
बस बदल गया है नजरिया तेरे आने से
राहें वही है , और हम भी है वही
बस मिल गयी मंजिल तेरा साथ पाने से
आज जाना और माना हमने
क्यों होता है इश्क इबादत
कैसे बन जाता है अजनबी
जिन्दगी और सांसों की जरूरत............
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