प्रशंसक

मंगलवार, 21 अप्रैल 2015

तुमसे मिलकर


तुमसे मिल कर जाना हमने, क्या कुछ मेरे अन्दर था
नन्हा सा बीज सा दिल, इस तपती ज़मीं के अन्दर था

आरजू बस इतनी सी थी, मुझे कोई मुझसा मिल जाये
जिसके प्यार के सागर में, खुशी से दर्द भी खिल जाये
प्यासा सा मन था और, दिल मे भावों का समन्दर था
नन्हा सा बीज सा दिल, इस तपती ज़मीं के अन्दर था

चुपके चुपके देखा तुमको, नजरें बचा बचाकर तुमसे ही
तुम भी अंजाने बनते रहे, सब कुछ जानकर हमसे ही
हम कबसे तुम्हारे थे, बस इक मिलन का अन्तर था
नन्हा सा बीज सा दिल, इस तपती ज़मीं के अन्दर था

बेइंतहा बेचैनी महसूस हुयी, जब भी नजरों से दूर हुये
दुआएं मुकम्मल हुयी, मेरे साये से आ तेरे साये मिले
बरसते भीगे सावन मे, सुलगते अरमानों का मन्जर था
नन्हा सा बीज सा दिल, इस तपती ज़मीं के अन्दर था


4 टिप्‍पणियां:

  1. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
    शुभकामनाएँ।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

    जवाब देंहटाएं
  3. चुपके चुपके देखा तुमको, नजरें बचा बचाकर तुमसे ही
    तुम भी अंजाने बनते रहे, सब कुछ जानकर हमसे ही
    हम कबसे तुम्हारे थे, बस इक मिलन का अन्तर था
    नन्हा सा बीज सा दिल, इस तपती ज़मीं के अन्दर था
    बढ़िया काव्य लिखा है आपने अपर्णा जी

    जवाब देंहटाएं

आपकी राय , आपके विचार अनमोल हैं
और लेखन को सुधारने के लिये आवश्यक

GreenEarth