बैठता हूँ तो घर पुराना याद
हमको आ रहा हैं
अहसास हो रहा कि बुढापा पास
मेरे आ रहा है
भीड भाड से भर गया मन, हुयी
दावतों से बेरुखी
याद कर भूली बिसरी बातें, छा
रही मन में खुशी
शरारते बच्चो सी करने को, दिल
फिर चाह रहा है
अहसास हो रहा कि बुढापा पास
मेरे आ रहा है
पॉप डिस्को पब की बातें, खास
कु्छ लगती नही
डोसे पिज्जा बर्गर से मेरी, भूख अब मिटती नही
छोटू हलवाई का समोसा, फिर
मुझे लुभा रहा है
अहसास हो रहा कि बुढापा पास
मेरे आ रहा है
आसमां छूने चले और छूट गया
अपना ही आगन
चलते चलते जाने कब छूट गया
अपनो का दामन
ऐ जिन्दगी फिर से तुम्हे जीने
आ दिन आ रहा है
अहसास हो रहा कि बुढापा पास
मेरे आ रहा है
यारों के संग घूमना, दुनिया
से हो्कर बेफिकर
सर्दी की रातों में छत पर, वो
इन्तजार हो बेसबर
वो भूला नगमा रफी लता का जुबॉ पर आ रहा है
अहसास हो रहा कि बुढापा पास मेरे आ रहा है
बैठता हूँ तो घर पुराना याद हमको आ रहा हैं
अहसास हो रहा कि बुढापा पास मेरे आ रहा है
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (29-01-2018) को "नवपल्लव परिधान" (चर्चा अंक-2863) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २९ जनवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार', सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
वाह!!लाजवाब।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
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