तीन साल की मेहनत, माँ पिता जी के आशीर्वाद और ईश्वर की अनुकम्पा से
आज राधिका ने यू. पी. पी. सी. एस. में फर्स्ट रैंक हासिल की। कल तक उसे मोहल्ले के
जो लोग पढाकू, घमंडी और न जाने क्या क्या कहते थे, आज अखबारों के पहले पन्ने पर छपी
राधिका की तस्वीर देख अपनी राय बदल चुके थे, सुबह से लोग बधाई देने आ रहे थे, सभी दिल
से आये हो ऐसा न था, कुछ लोग अपने नये सम्बन्ध बनाने को भी आतुर थे, कोई कह रहा था-
राधिका की माँ मै तो पहले से ही जानती थी आपकी बेटी जरूर एक दिन आपका ही नही हम सबका
नाम रौशन करेगी, कोई कह रहा था, बिटिया ने मोहल्ले का नाम ऊंचा कर दिया……
शाम को राधिका अपने मित्रों की जिद पर उनको पार्टी देने गयी। फ्रैंड्स
जिद कर रहे थे पार्टी हो हम कान्हा कोंटीनेन्टल में ही लेंगें, जो की राधिका के घर
से काफी दूर था, पर माँ ने कहा- कोई बात नही बेटा- दोस्तो का भी हक होता है, फिर स्कूटी
से तो जाना है तुझे, हाँ बस जरा समय का ख्याल रखना।
पार्टी खत्म होते होते करीब ९ बज गये, वैसे तो मई जून के महीने में
नौ बजे शहरों में सड़कों पर खूब चहल पहल रहती है मगर अचानक कुछ आंधी का सा मौसम बनने
के कारण थोडा सन्नाटा सा होने लगा था। राधिका रोज की अपेक्षा कुछ तेज स्कूटी चलाते
हुये खुद को ही कोस रही थी कि अन्दर रेस्टोरेंट में न समय का पता चला न मौसम का, और
आज पता नही क्यों माँ ने भी फोन करके जल्दी आने को नही कहा, शायद आज वो मुझे मेरी खुशी
को कम नही करना चाहती थीं, राधिका ऐसे ही ख्यालों में खोई हुयी स्कूटी चला रही थी कि अचानक तीन लोगों ने बाइक से उसे घेर लिया। राधिका कुछ समझ
पाती इससे पहले वो सब हो गया जो किसी भी लड़्की के जीवन में नही होना चाहिये था। उसे
नही याद कि कौन उसके लहूलुहान तन और मॄत मन को किस तरह अस्पताल ले कर आया। कुछ ही
पलों में उसकी सारी खुशियां कही दूर जा चुकीं थी। माँ पिता जी जो कल शाम तक गर्व से
सर उठाये खुश थे, शर्म से उनके कांधे और आँखे झुकी जा रही थी। कल सुबह जिस मीडिया ने
मेरी सफलता की तस्वीरे छापी थीं, वो उसकी बर्बादी की खबर लिखने को आतुर था। मगर राधिका ने निश्चय किया और मन ही मन खुद से बोली- जीवन की एक दुर्घटना मेरे जीवन को समाप्त नही कर सकेगी। राक्षस मेरा शरीर
नोच सकते है, मेरा आत्मविश्वास नही। एक रात का अन्धकार मेरे जीवन के हर उजालें को
नही ढक सकता। अस्पताल मेरे शरीर के घाव भर कर मुझे दो चार दिन में यहाँ से छुट्टी दे
ही देगा मगर मन पर लगे घाव मुझे ही भरने होंगे, वो भी उस समाज में रह कर जो पल पल मुझे
देख कर याद दिलायेंगा – ये वही लड़की है जिसके साथ……..
बहुत ही शर्मसार करती मानव समाज में व्याप्त दुराचारियों की की सोच । सरकारे मौन दिखती space! लोकतंत्र में निजी स्वार्थ आडे आजाते। विदेश फिर भी कठिन फैसले लेने में सक्षम।
जवाब देंहटाएंनारी के दिन बहुर रहे
गर नारी ही स मझे।
एकजुटता में ताकत है
दरिन्दे भी समझें ।
सतर्कता और संहर्ष उन्नति को दलाता । हमें बुराइयों को दूर करने हेतु अधिक संघर्षशील होना होगा। लडना होगा । समाज बदलेगा जरूर बदलेगा। नारी समुदाय को जागरूक करने पर और बल देने की पहल space!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31.05.17 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2987 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंकुछ कविता, कहानी या आप किसी मुद्दे पर हमें दीजियेगा तो बहुत खुशी होगी। हमने एक न्यूज पोर्टल लांच किया है।
जवाब देंहटाएंforum4.co.in
इसमें हम कैम्पस की खबरों को भी कवर कर रहे हैं। साथ ही कॉलेज लाइफ के बारे में।
हमें मेल कर सकती हैं- 18forum4@gmail.com
Ya whatsapp 9718587015
धन्यवाद आदरणीय प्रभात जी !
हटाएंआप रचना ,आलेख आदि को कितने दिन में प्रकाशन करेंगे सूचना कैसे देगे | सुभकामनाओं सहित