वो महीन गुलाबी
इश्क के पन्ने
इश्क के पन्ने
और उन पर लिखी
मोहब्बत की आयतें
मोहब्बत की आयतें
बेशकीमती हीरे सी
रखी है सहेज कर
रखी है सहेज कर
यादों की रुमाली
चादर की तहों में
चादर की तहों में
वो पन्ने जिनमें
अल्फाज नही
अल्फाज नही
लिखे हैं सिर्फ
नर्म गर्म अहसास
नर्म गर्म अहसास
हर दिन पढती और
लिखती रहती हूं`
कुछ न कुछ
तुम्हारी ही जबान में
तुम्हारी ही जबान में
सच कितना आसान होता है
बयां करना
मन में उमडते जज्बात
अहसासों की जुबां मे
अहसासों की जुबां मे
एक और बडी प्यारी
सी
खूबसूरती है इसमें
नही करना होता
नही करना होता
किसी को इन्तजार
किसी के चुप होने का
किसी के चुप होने का
न कोई गुंजाइश होती
ना समझी की
ना समझी की
ना ही आडे आती है
लफ्जों की दीवार
दोनो खमोशी से
एक ही पल में
एक ही पल में
कहते सुनते और
लिखते रहते हैं
लिखते रहते हैं
गुलाबी इश्क के पन्ने
अहसासों की जुबानी
अहसासों की जुबानी
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (21-01-2019) को "पहन पीत परिधान" (चर्चा अंक-3223) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 20/01/2019 की बुलेटिन, " भारत के 'जेम्स बॉन्ड' को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम“ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबेहद खुबसुरत रचना.
जवाब देंहटाएंसुना है यादों में मोहब्बत को बगल में बैठा लिया जाता है.
स्वागत है ठीक हो न जाएँ
कोमल सी रचना
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