रीमा और राहुल दोनो ही मिडिल क्लास परिवार से आते थे। रीमा का पढाई में तो राहुल को ऐक्टिंग में रुझान था, मगर राहुल के पिता चाहते
थे कि उनकी ही तरह उनका बेटा किसी सरकारी नौकरी में लग जाय। कालेज में ही रीमा और राहुल
एक दूसरे से मिले और फिर जान पहचान दोस्ती और दोस्ती मोहब्बत में बदल गयी। दोनो ही
परिवारों को उनके इस सम्बन्ध पर शुरु शुरु में ऐतराज तो हुआ जितना एक माता पिता को
होना ही चाहिये, मगर धीरे धीरे उन्होने इस रिश्ते को स्वीकृति दे दी। राहुल के पिता
चाहते थे कि राहुल का विवाह नौकरी के बाद हो, और ऐसा ही कुछ विचार रीमा के परिवार वालों
का भी था। मगर राहुल के कुछ और ही सपने थे, और उसके इन सपनों को साकार करने में रीमा
पूरी तरह उसके साथ थी। बडी मुश्किल से वह दोनो अपने बडों को यह समझाने में कामयाब हुये
कि राहुल को दो साल का समय दिया जाय, अगर वह अपने सपने पूरे करने में सफल नही हुआ तो
वह वापस आकर पिता जी की बात मान लेगा, रीमा के पिता भी दो वर्ष तक रीमा का विवाह कही
और न करने के लिये राजी हो गये।
पूर्ण सहमति न होते हुये भी सभी
ने खुशी और आशीर्वाद के साथ राहुल को मुम्बई भेज दिया इधर रीमा ने पीसीएस की तैयारी
करने का निर्णय यह सोच कर लिया कि अब वह राहुल के पिता के सपने को पूरा
करेगी।
राहुल की मेहनत रंग ला रही थी, उसे
थोडा बहुत काम मिलने लगा था, मगर उसे अभी और समय चाहिये था, रीमा ने उसे आश्वस्त किया
कि वह हमेशा उसके साथ है।
धीरे धीरे चार वर्ष बीत गये, राहुल
को एक फिल्म में लीड रोल मिला था, बस उसे फिल्म की रिलीज का इन्तजार था, इधर रीमा
ने भी पी सी एस का इन्टरव्यू दिया था।
मेहनत और बडों का आशीष रंग लाया।
परिवार के लोग बच्चों की सफलता और लगन से खुश थे, अब उनकी शादी और टालने का कोई कारण
नही था। रीमा और राहुल एक बन्धन में बंध कर खुश थे, दुनिया की हर खुशी उन्हे मिल गयी
थी।
समय और सपनों की अपनी ही एक चाल
होती है, ख्वाब एक ऐसी चीज है जो कभी मुकम्मल नही होते क्योकि सोच उसमें गुणा भाग करती
ही रहती है। रीमा की जॉब और राहुल के काम ने दोनो को एक छत के नीचे रहने की इजाजत नही
दी। शुरु शुरु में दोनो ने इसे मैनेज करने की बहुत कोशिश की मगर जहाँ से हम जिन्दगी
को मैनेज करना शुरु कर देते है दरअसल जिन्दगी वही से टूटना शुरु हो जाती है। मोहब्बत
को मैनेजमेंट नही समर्पण की जरूरत होती है। प्यार के कहकहे धीरे धीरे आर्गूमेण्ट्स
और फिर आरोपों तक पहुंचने लगे। दोनो ही कल तक जिन खूबियों पर एक दूसरे पर जान देते
थे आज उन्ही को खामियां बता रहे थे। सात सालों का रिश्ता सिसक रहा था,जिस रिश्ते की
बुनियाद मोहब्बत थी आज वही नेस्तेनाबूद थी।
राहुल और रीमा जिन्होने एक दिन अपने
परिवार वालों को हजार तरीकों से समझाया था कि वह एक दूसरे के लिये ही बने हैं आज कोर्ट
में खडे होकर एक दूसरे से अलग होने के लिये दलीले दे रहे थे वो राहुल जो रील
लाइफ का सफल नायक था रियल लाइफ में अपनी मोहब्बत बचाने में असफल था, रीमा जो
अपाने विभाग में सफल एड्मिनिस्ट्रेटर थी अपनी ही जिन्द्गी को एड्मिन नही कर सकी
थी। और परिवार वाले किसी भी भूमिका में नही थे। न वह उन्हे एक होने से रोक सके थे
न ही अलग होने के फैसले को रोक सके थे।
भले ही दुनिया की नजर में, रीमा
और राहुल अलग हो गये थे मगर मेरी निगाह में यह मोहब्बत का तलाक था।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी राय , आपके विचार अनमोल हैं
और लेखन को सुधारने के लिये आवश्यक