नवजीवन का आगमन, कई
प्रश्न भी लेकर आया है
कुछ दुविधा में मन मेरा,
क्या छोडूं और क्या बांधू
क्या छोडूं उस चिडियां
को, जो फुदकती आंगन में
या छोडूं अल्लहडपन को, जो
बरसता था सावन में
क्या कुछ काम के ये होंगे,
या कर्कट साबित होगे
या बरसों बक्सों मे बन्द,
बस आभासी साथी होंगें
नवखुशियों का आगमन, जटिल
पहेली भी लाया है
कुछ दुविधा में मन मेरा,
क्या छोडूं और क्या बांधू
किन यादों को धरती के,
आंचल में दबा कर तज दूँ
किन स्मॄतियों को हदय के,
पन्नों में अंकित कर लूँ
क्या विरक्त हो जायेंगी, या नवप्रभा भोर की देखेंगी
क्या मेरी बचपन गाथा में,
अनुरक्ति किसी की होगी
नवप्रभात का आगमन, कुछ
संशय भी संग लाया है
कुछ दुविधा में मन मेरा,
क्या छोडूं और क्या बांधू
मुक्त करूं कुछ बंधुजनों को, या भावों को ढीला कर दूँ
या नयनों में भर नाते,
क्या दायित्वों पर ताला चढ दूँ
मन विमुक्ति हो जायेगा, या चिरकाल ऋणी रह जायेगा
भावनाओंं के भंवर का भला, क्या समाधान हो पायेगा
नवबंधन का आगमन,
कृतध्नता का भार भी लाया है
कुछ दुविधा में मन मेरा,
क्या छोडूं और क्या बांधू
वाह जी बढि़या
जवाब देंहटाएंसुंदर!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
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