माना कि है एक बरसात,
आंखों में तेरी
मगर हर किसी आंगन बरसा
नही करते
सुना है बाजार में उतरी
है, चीजें कई नई
मगर हर किसी को जरूरी
कहा नही करते
आयेगें कई तुमसे कुछ
सुनने की आस में
मगर हर कही हाले दिल,
बयां नही करते
उसने दे तो दिये कांधे
तुझे सहारे के लिये
मगर हर इक ठौर पलाश
ठहरा नही करते
मिलेंगें बहुत तुमसे,
अजीज रहनुमा बनकर
मगर हर किसी को तबज्जो
दिया नही करते
माना तेरी मेजबानी का,
सारा जमाना कायल
मगर हर शख्स से हमप्याला
हुआ नही करते
सुन्दर रचना
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