हाथ ने बढाया हाथ
हाथ आया हाथ में
शर्म से फिर झूठ-मूठ
हाथ खींचा हाथ ने
चाहता हूँ रहे सदा,
ये हाथ तेरे हाथ में
कही ये बात हाथ से
चुपके से तब हाथ ने
चुपके से तब हाथ ने
हाथ की ये हाँ थी या
हाथ की थी ये अदा
हाथ की कुछ गर्मियां
रख दी उसने हाथ में
हौसले हाथ के कुछ
और थोडा बढ चले
दबा के फिर हाथ को
गुस्ताखी करी हाथ ने
कह सकी न धडकने
हाथ की, कुछ हाथ से
हाथ में ले एक दिल
हाथ में ले एक दिल
दिल एक रखा हाथ ने
कही बात दिल की कुछ
इस तरह से हाथ नें
इस तरह से हाथ नें
और समझे लोग ये
मिलाया हाथ, हाथ ने
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 10 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10 -11-2019) को दोनों पक्षों को मिला, उनका अब अधिकार (चर्चा अंक 3516) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (11-11-2019) को "दोनों पक्षों को मिला, उनका अब अधिकार" (चर्चा अंक 3516) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
वाह! स्पर्श की भाषा को शब्द देना एक कविके ही बस की बात है |अव्यक्त एहसासों की सुंदर अभिव्यक्ति प्रिय अपर्णा जी | हार्दिक शुभकामनायें और बधाई ||
जवाब देंहटाएंहाथे प्रतीकात्मक हो गई इंसानी भावों की बहुत खूब लिखा आपने...👌
जवाब देंहटाएंवाह ! बेहतरीन सृजन
जवाब देंहटाएंसादर
वाह वाह
जवाब देंहटाएंमेरा पहला मिलन स्मरण हो आया।
जवाब देंहटाएंआपने भावों को क्रमबद्ध कर के सांचे में ढाल दिया है।
उम्दा रचना।
कुछ पंक्तियां आपकी नज़र 👉👉 ख़ाका
बहुत बढिया!!शब्दों के साथ अपनी भावनाओ को बाँधना
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