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गुरुवार, 26 दिसंबर 2019

रंग



मै भी देखता हूँ भला कैसे नही प्यार करेगी मुझे। देखना तुम लोग एक दिन इसे तुम सबकी भाभी ना बनाया तो मेरा नाम भी गिरधारी लाल नही। कॉलेज की कैंटीन में गिरधारी अपने दोस्तों के बीच अपने दोस्तों को कम कुछ दूर से निकलती हुयी रीमा और उसकी सहेलियों को ज्यादा सुना रहा था।
चार – पाँच महीने पहले रीमा ने यूनिवर्सिटी मे आर्ट्स में दाखिला लिया था, और गिरधारी कानून की पढाई कर रहा था। वैसे तो गिरधारी को बुरे लडको को श्रेणी में नही रखा जा सकता किन्तु शायद यह उम्र के उस मोड का ही दोष था कि रीमा के बार बार मना करने के बाद, गिरधारी का मन कम पर अभिमान ज्यादा आहत हुआ था। और अब वो किसी भी प्रकार से उसको पाना चाहता था।
प्रियंका, रीमा की बचपन की सहेली थी, वो जानती थी कि रीमा गिरधारी जैसे लडकों से डरने वालों में से नही थी, मगर हर गलत बात का विरोध करने वाली रीमा को वो बिल्कुल शान्त देख रही थी। आज उससे जब रहा नही गया तो उसने पूँछ ही लिया- रीमा ये बताओ तुम इस लडके को जवाब क्यों नही दे देती, दिन पर दिन वो बढ- चढ कर बोल रहा है, तो रीमा ने हल्का सा मुस्करा कर बस इतना कहा – जानती हूँ मेरी प्यारी सखी तुमको मेरी बहुत चिन्ता है , मगर तुम बिल्कुल परेशान ना हो, मै ऐसे किसी भी लडके को तुम्हारा जीजा नही बनाउंगी।
होली की छुट्टियों के बाद आज जब दोनो सहेलियां कॉलेज आ रही थीं तो प्रियंका का मन बहुत डर रहा था, एक तो कई दिन बाद वो रीमा को देखेगा वो भी होली के बाद, कही कुछ अनर्थ ना कर दे।
मगर ये क्या, गिरधारी तो कही दिखा ही नही, और फिर अगले उसके अगले और ना जाने कितने अगले दिनों तक कॉलेज में कही नही दिखा।
एक दिन प्रियंका बोली- रीमा होली के बाद से तो वो दिखा ही नही, उसके दोस्त तो दिखते है पर वो नजर नही आता, उसको कही कुछ हो तो नही गया। रीमा बोली- क्यों परेशान होती हो, हमे क्या लेना देना।
मगर फिर भी प्रियंका के मन में कौतूहल जन्म ले चुका था, एक दिन क्लास से जल्दी निकल कर कैंटीन की तरफ आयी ये सोच कर कि उसका कोई दोस्त दिखे तो पूंछू तो कहाँ गये मियां मजनूं कि तभी उसकी नजर लॉ की क्लास में पढाई कर रहे गिरधारी पर पडी। उसे तो यकीन ही नही आ रहा था कि ऐसा कैसे हो सकता है, ये कॉलेज आ रहा है और पढाई भी कर रहा है।
वापस वो क्लास की तरफ ये सोच कर मुड गयी कि रीमा को भी ये दुर्लभ दॄश्य दिखाना चाहिये। किन्तु जैसे ही उसने सारी बात रीमा को बताई उसने कहा- ठीक ही तो है कॉलेज में पढाई ही तो करनी चाहिये।
प्रियंका को उसके जवाब से आश्चर्य हुआ फिर अगले ही पल बोली अब ये बताओ आखिर क्या तुमने उससे कुछ कहा है, या फिर मुझे ये उससे ही जा कर पूंछना होगा कह कर प्रियंका जाने के लिये मुडी तभी रीमा ने हाथ पकड कर कहा – अच्छा सुनो, होली वाले दिन ये महाशय घर तक आये थे, मालूम नही उसको यह पता था कि इस समय कोई घर पर नही या फिर कोई इक्तेफाक हुआ था। गेट खोला तो हाथ में रंग लिये खडा था, पता नही कुछ संस्कार बचे थे या नाटक कर करा था , बोला- हम आपको रंग लगाने आये है। एक पल को तो मुझे भी कुछ समझ नही आया, रंग लगवा लेने का तो सवाल ही पैदा नही होता और मना करने पर बहुत कुछ हो सकता था। बहुत सोच समझ कर बहुत ही शान्त लहजे में मैने कहा- मुझे कोई परेशानी नही रंग लगवाने से मगर क्या आप जानते हो कि होली का मतलब क्या होता है , रंगों का मतलब क्या है फिर थोडा रुक कर बोली- रंग का अर्थ है एक रंग में रंग जाना, समान हो जाना, बाहरी और भीतरी भेद का मिट जाना, क्या आपको लगता है आप अपने मन का हर मैल धो कर हाथ में सच्चाई का रंग ले कर आये हो। आपने आज तक मेरे साथ पिछले सारे दिनों जैसा व्यव्हार किया क्या उस रंग से मुझे रंग कर अपने अभिमान की संतुष्टि कर सकेंगे। मुझे भी पता है प्रेम करना या प्रेम हो जाना गलत नही यह तो ईश्वरीय गुण है मगर प्रेम में ना छल का स्थान है ना बल का, मगर आशक्ति को प्रेम कहना आपका निरा भ्रम है। मै अब आप पर छोडती हूँ कि आपको किसे रंग लगाने की आवश्कता है, मेरे तन को या अपने मन को।
जानती हो मेरी बातें सुन कर पहले तो कुछ क्षण वह मूर्तिवत खडा रहा फिर वो चुपचाप मेरे पैरों के पास सारा रंग रख कर चुपचाप चला गया। मै जानती हूँ अब वो सिर्फ अपने मन की सच के रंग मे रंग रहा है। अब उसे किसी की जरूरत नही। वो अब सच में गिरधारी है। अब उसे किसी रीमा पर आश्क्ति नही होगी।  

7 टिप्‍पणियां:

  1. "वो अब सच में गिरधारी है"

    वाह, बहुत खूब

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  2. सुंदर सराहनीय कहानी ,रंग और होली का असली मतलब सीखा गई ,सादर नमन

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  3. वाह! पलाश जी, बहुत ही सुंदर, भावनाओं में गुंथी कथा है। प्यार का अर्थ कोई समझे तो सही!!

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