खुशियां बांट तो सकते ही हैं
हाथ में हाथ नहीं तो क्या
साथ निभा तो सकते ही हैं
रात है लम्बी तो क्या
मसाल जला तो सकते ही हैं
हैं बंद जो घर में तो क्या
हौसला बढ़ा तो सकते ही हैं
ताले पड़े मंदिर में तो क्या
पुकार लगा तो सकते ही हैं
सब काम ढप है तो क्या
नेकियां कमा तो सकते ही हैं
फैल रही निराशा तो क्या
आस को उगा तो सकते ही हैं
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 26 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंमाँ जगदम्बा की कृपा आप पर बनी रहे।।
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घर मे ही रहिए, स्वस्थ रहें।
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