बैठना तो है घर पर मगर,
कर्त्तव्य पथ पर न विश्राम कर
समय जो आज तुमको मिला,
उसका यथोचित मान कर
थोड़ा टटोलो मन को अपने,
दुर्भावों का कर्कट साफ कर
काट सर्पीले बैरों के बंधन ,
अपने अहम का त्याग कर
कितने ही वीरों ने प्रान छोड़े,
गांव घर द्वार धरती के लिए
कुछ हमें भी चाहिए सोचना ,
उनके परिवार बच्चों के लिए
अकर्म हो जाएं हम सभी,
यह तो अर्थ नहीं घर रहने का
है उत्तम अवसर धरती और,
मानवता की सेवा करने का
समय मिला तो, आओ मिल,
सुंदर जगत का निरमान करें
भूले करीं हैं हमने जो बरसों,
अब प्रायश्चित कर निदान करें
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (01-04-2020) को "कोरोना से खुद बचो, और बचाओ देश" (चर्चाअंक - 3658) पर भी होगी।
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मित्रों!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
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