ठहरे हुये पानी में
वो आग लगा देते हैं
बहती हुयी लहरों का
अंजाम भला क्या होगा
झुकती हुयी नजरों से
वो कयामत बुला लेते है
ऊठती हुयी निगाहो का
अंदाज भला क्या होगा
उलझी हुयी जुल्फो से
वो सुबह को शाम करते है
भीगे हुए गेसुओं से
मौसम भला क्या होगा
हल्की सी एक झलक से
वो तारों को रौशन करते हैं
अंजुमन में उनके आने से
चांद का भला क्या होगा
आहट होती है आने की
और बहारें पानी भरती है
ठहरेंगें जब वो गुलशन में
कयामत का भला क्या होगा
बहुत लाजवाब रचना है ...
जवाब देंहटाएंवाह्ह्ह् उम्दा सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
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