नींद हल्की हल्की सी खुली थी, घडी का पहला अलार्म बजा था, अलार्म
बन्द करके सो गयी सोचा आज तो इतवार है, और इतवार का तो मतलब ही है देर से उठना। अभी
दुबारा ठीक से सो भी नही पायी थी कि फोन की घंटी बजी- ध्यान आया कि शायद निम्मी की
ट्रेन आ गयी होगी। निम्मी मेरी बुआ जी की बडी बेटी। उसका पीसीएस मेन्स क्लिअर हो
गया था और उसे इन्टरव्यू देने आना था। मै इलाहाबाद में थी सो मेरे पास आ रही थी। पहली
बार आ रही थी तो मैने कह दिया था कि स्टेशन आ जाऊंगी। फोन देखा निम्मी का ही फोन था-
दीदी ट्रेन दो घंटे लेट है, जब फाफामऊ आउंगी तब काल कर दूंगी, आप तब आ जाना। अभी आप
सो लो। फोन रख कर मै सोचने लगी कि उसको मुझे जगा कर ये बताने की क्या वाकई जरूरत थी
कि अभी सो लो। खैर उसने तो कह दिया सो लो मगर मेरी नींद उड चुकी थी सो किचन में जाकर
एक कप चाय बनाई और अखबार लेकर बैठ गयी। घडी की तरफ देखा साढे सात बज रहे थे, अचानक
से याद आया कभी बचपन में इस समय का कितनी बेसबरी से इन्तजार करते थे, रंगोली जो देखनी
होती थी, अनायास ही हाथ पास मे पडे रिमोट पर चला गया और उंगलियां टी वी पर डी डी वन
खोजने लगी। एक लम्बे अरसे बाद रंगोली के प्रति वही आकर्षण जाग उठा। रंगोली शुरु हो
चुकी थी और गाना आ रहा था- मदहोश दिल की धडकन चुप सी ये तनहाई……..बहुत सी यादे आंखों
के सामने तैर सी गयी, वो हर पल याद आने लगा जब मै और वो एक साथ थे, गाने में तो प्यार
का फिल्मांकन था, हमने इस प्यार को जिया था। बस मन किया की पल भर में उड के उनके पास
पहुँच जाऊँ। उडना तो असम्भव था, रिमोट को म्यूट किया और फोन मिला दिया। सोचा कहूंगी
टी वी खोलो, दूर ही सही दोनो एक साथ फिर से इस गाने को एकसाथ सुनते हैं। पूरी कॉल चली
गयी मगर फोन न उठा, एक एक करके दस बारह कॉल कर दी, मन में कुछ घबराहट सी होने लगी।
रात में तो बात करके सोयी थी, आखिर क्या हो गया। कुछ समझ नही आ रहा था। सोचा अजीत को
फोन मिला लूँ, फिर सोचा पता नही, इतनी सुबह उसको फोन करूं तो पता नही वो क्या समझे,
एक बार बहुत कहने सुनने के बाद इन्होने अपने रूम पार्टनर अजीत का नम्बर दिया था, बस यही सोच
कर लिया था कि साथ रहने वाले का नम्बर तो पास में होना ही चाहिये। तभी डोर बेल बजी, किशन
दूध लाया था। दूध लेकर आयी फिर सोचा चलो एक बार और इन्हे कॉल करके देखती हूँ शायद उठ
गये हों। सोचा शायद साईलेंट पर करके सो गये हों। कितनी बार कह चुकी कि फोन साइलेंट
मोड में मत करके सोया करो मगर नही करनी तो अपने ही मन की है ना। कॉल करने को फोन उठाया
ही था कि निम्मी का कॉल आ गया, आवाज आयी- दीदी हम फाफामऊ आ गये, आप आ जाओ। बेमन से
स्कूटी निकाली, सोचा निम्मी को ले आती हूँ, शायद तब तक ये उठ ही जाये। भगवान से बस
मनाती रही- हे भगवान बस ये सो ही रहे हो, सब ठीक हो। इलाहाबद में कुम्भ चल रहा था,
वो रास्ता जो २० मिनट में कवर करती थी, करीब ४५ मिनट लग गये। सोच रही थी अभी तक इनका
कॉल नही आया। स्टेशन पहुँची तो देखा बहुत से लोगों की भीड लगी हुयी है लोग भाग रहे
थे, शायद कुछ देर पहले ही कोई दुर्घटना घटित हुयी थी। स्कूटी एक किनारे लगाई निम्मी
को कॉल किया। फोन स्विच ऑफ। दिल बहुत तेज घबराने लगा। कही निम्मी को …. नही नही ऐसा
कुछ नही हुआ होगा। खुद को सम्भालते हुये भीड से भिडते टकराते स्टेशन के अन्दर गयी।
लोग पागलों की तरह इधर उधर भाग रहे थे। लोगो की बातों से अंदाजा हुआ कि आखिरी समय में
ट्रेन का प्लेटफार्म बदलने के कारण भगदड मच गयी थी जिससे शायद एक व्यक्ति की मृत्यु हो गयी थी और कुछ लोग घायल भी हो गये थे। हर तरफ नजर दौडा ली निम्मी का कुछ पता नही चल रहा था। फोन लगातार स्विच ऑफ जा रहा था, तब तक एनाउन्समेंट हुआ, गोरखपुर से आने वाली गोरखपुर एक्सप्रेस अपने नियत समय से तीन घंटा लेट
से चल रही है। गाडी कुछ ही देर में प्लेटफार्म नम्बर दो पर आ रही है। भगवान को थैन्क्स
बोला कि चलो निम्मी ठीक है, मन की परेशानी शान्त हुयी मगर सहसा बगल से एक बुरी तरह से घायल व्यक्ति को ले जाते लोगों को देख कर अपने इस तरह से स्वार्थी होने पर मन लज्जा से भर गया। सोचने लगी कैसे हम लोग अपने आस पास की समस्याओं से संवेदना शून्य हो जाते हैं। तभी ट्रेन के आने की आवाज आयी। एक पल पहले मन
मे आये लज्जा भाव को वही छोड आने वाले डिब्बों में निम्मी को ढूंढने लगी। धीरे धीरे निकलते
ट्रेन के ड्ब्बों में से निम्मी दिखी, वो रो रही थी। एक बार फिर दिल घबरा गया, आखिर
क्यों रो रही है, तभी ख्याल आया ओह शायद उसका मोबाइल चोरी हो गया है, अच्छा तभी फोन
स्विच ऑफ जा रहा था। ट्रेन लगभग रूक गयी थी, मै निम्मी के ड्ब्बे की तरफ बडी। निम्मी
ट्रेन से उतरते ही मेरे गले लग के रोने लगी। कोई चलती ट्रेन से उसका बैग ले कर कूद
गया था। उसमें उसके सारे डॉकूमेन्ट्स थे। किसी तरफ से निम्मी को चुप करा कर घर लायी,
मन में एक तरफ निम्मी के लिये दुख हो रहा था और दूसरी तरफ इनके लिये चिन्ता। ये कहना मुश्किल है मन किसके लिये ज्यादा परेशान था। किसी तरह उसे चुप करा किचन मे चाय बनाने गयी। सुबह का चाय का भगौना
शिकायत करने लगा- सुबह चाय तो बडे मन से बनायी थी न, देखो जाकर अभी भी मेज पर पडी रो रही है। फिर ख्याल आया निम्मी भी तो रो रही है, फटाफट चाय बनायी।
कल बडे मन से बिग बाजार से रेडीमेड आलू की टिक्की लायी थी निम्मी की फेवरेट जो थी, सोचा था
सुबह नाश्ते मे फटाफट डी फ्राई कर दूंगी, मगर मै जानती थी कि अभी न तो निम्मी कुछ खा
पायेगी और न मै सो सिर्फ नमकीन बिस्किट निकाल लिये।
तभी मोबाइल पर रिंग हुयी, मन ने कहा पक्का इनका ही फोन होगा। सोचा
अब मै भी नही उठाती फोन, इनको भी तो समझ आये कि फोन न उठाने पर कितनी चिन्ता हो जाती है, मगर
मन कहाँ मानने वाला था, फोन उठा लिया, मगर ये क्या अजीत की कॉल? एक पल में मन फिर से
हजारों शंकाओं से घिर गया। फोन उठाया, चिरपरिचित आवाज आई- हैलो उठ गयी कि नही।कुछ समझ नही आया बस रो पडी,
उधर से आवाज आयी- अरे क्या हुआ , कुछ तो बताओ, सब ठीक तो है ना,
थोडा सम्भलते हुये शिकायत के लहजे में कहा- सुबह से कहाँ थे, कितनी बार कॉल कर चुकी, आप तो निश्चिन्त सो रहे थे और मै परेशान हो रही थी।
अरे प्लीज रुको मेरी बात तो सुनो- कल रात तुमसे बात करने के
बाद हम और अजीत छत पर गये, पता नही कैसे मेरा मोबाइल गिर गया और उसका डिस्प्ले खराब
हो गया। और तुम तो जानती ही हो अकसर मै फोन साइलेंट पर रखता हूँ और फिर तुमने ही तो
कल कहा था कि कल सनडे है ग्यारह बजे तक सोऊंगी सो मैने सोचा शायद अब उठ गयी हो इसलिये
कॉल की। लेकिन हाँ आज एक प्रामिस करता हूँ अब से कभी मोबाइल साइलेंट पर करके नही सोऊंगा।
अब तो हंस दो प्लीज। तभी याद आया कि चाय तो पक कर आधी हो चुकी होगी और निम्मी…
अच्छा
सुनो हम आज शाम नही मिल रहे, निम्मी आयी हुयी है, तुमको और भी बहुत कुछ बताना है, अभी रखती
हूँ, फिर कॉल करूंगी। बॉय, और धीरे से आई लव यू जी कह फोन रख वापस चल दी किचन की ओर। मुडते हुये नजर म्यूट चल रहे टी वी पर पडी, स्टेशन पर घायल पडे लोगो को अस्पताल ले जने की तस्वीरे दिखायी जा रही थी। अचानक से वापस वो दर्द वो चीखें कानों में पडने लगी।
और मै सोचने लगी - आज सुबह से कितना कुछ हो गया............
सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (03-12-2017) को "दिसम्बर लाता है नया साल" (चर्चा अंक-2806) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय /आदरणीया आपको अवगत कराते हुए अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि हिंदी ब्लॉग जगत के 'सशक्त रचनाकार' विशेषांक एवं 'पाठकों की पसंद' हेतु 'पांच लिंकों का आनंद' में सोमवार ०४ दिसंबर २०१७ की प्रस्तुति में आप सभी आमंत्रित हैं । अतः आपसे अनुरोध है ब्लॉग पर अवश्य पधारें। .................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
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