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गुरुवार, 2 नवंबर 2017

अक्सर दिवाली में


साफ सफाई कें साथ उभरती
धुंधली यादें अक्सर दिवाली में
कभी किसी कोने से आ जाती
मीठी बातें अक्सर दिवाली में

घर कें स्टोर रूम में क्या क्या
कब रखा था ये भूल गयी थी
पुराने बक्सों के सामानों में
नन्ही गुडिया दबी रखी थी
जी उठी अनगिनत कहानी
जिनके पात्र थे हम लरकानी में
साफ सफाई कें साथ उभरती
धुंधली यादें अक्सर दिवाली में

लाएब्रेरी की किताबें कबसे
धूल धूसरित हुयी रखी थी
स्पर्श किया तो सुबक पडी
अरसे से चुपचाप पडी थी
बिखर पडे अनपोस्ट लेटर 
जो लिखे थे इश्क की रवानी में
साफ सफाई कें साथ उभरती
धुंधली यादें अक्सर दिवाली में

छोटे से आंगन में यूं ही
चली निराई जब करने
खुरपी से कुछ टकराया
हुयी आवाज कुछ खन से
निकले सिक्के दस बीस के
जो बोये थे कभी नादानी में
साफ सफाई कें साथ उभरती
धुंधली यादें अक्सर दिवाली में

साफ सफाई कें साथ उभरती
धुंधली यादें अक्सर दिवाली में
कभी किसी कोने से आ जाती
मीठी बातें अक्सर दिवाली में

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (04-11-2017) को
    "दर्दे-ए-दिल की फिक्र" (चर्चा अंक 2778)
    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    कार्तिक पूर्णिमा (गुरू नानक जयन्ती) की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन पृथ्वीराज कपूर और सोमनाथ शर्मा - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह..याद यदा कदा दबी छुपी यादें ..आ जाती हैं..कुछ पलटते-उलटते

    जवाब देंहटाएं

आपकी राय , आपके विचार अनमोल हैं
और लेखन को सुधारने के लिये आवश्यक

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